सरकारों को नौजवानों की भावनाएं समझने की जरुरत
क्या कारण है कि हक में उठने वाली आवाज आज विरोध में बदल गई है? देश के उज्जवल भविष्य को आज क्यों सड़कों पर आने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है? क्या सच में युवाओं के पास इतनी भी समझ नही कि वह सच झूठ की पहचान किए बगैर सिर्फ विरोधियों के उकसाने पर ही सड़को पर निकल आए?
इसका जवाब है नही ऐसा नही हो सकता। क्योंकि कालेजों में पढ़ने वाला नौजवान कभी जोमेटो, स्वीगी में डिलिवरी ब्वाय बनने का सपना नही देखता। वह अच्छी सैलरी वाली अच्छी स्थाई नौकरी चाहता है जिसके लिए उसने दिन रात एक किया। युवा चाहता है कि जिस भविष्य की उसने कल्पना की है उसका वह भविष्य हो। परन्तु ऐसा नही हो रहा। युवा कभी पोस्ट ग्रैजूऐट होकर पेन बेचने की कल्पना, या शैंपू इत्यादि बेचने का सोच भी नही सकता । परन्तु मजबूरी वश उसे वह बेचना पड़ रहा है।
हकीकत है कि मूंछ फूटने के साथ साथ ही एक युवा की आखों में कई उज्जवल ख्वाब संजोने लगते है, वह कई बड़े बडे सपने देखता है। जिस जूनून से वह अपने भविष्य को संवारने के लिए काम करता है आज उसे अपने नेताओं में वह जूनून नही दिख रहा। युवा अपने भविष्य के प्रति बेहद चिंतित, उदासहीन है। क्योंकि उन्हे वही चिंता आज उसे अपने उन नेताओं के माथों पर नही दिख रही जिसके लिए उन युवाओं ने अपने नेता को चुना था।
उसके नेता वह वायदा ही पूरा नही कर रहे जिसके लिए उन्होने उसे अपना वोट दिया था। युवाओं का पेट आज महज जुमलों, बातों, दावों से नही भर रहा। युवाओं का कहना है कि उन्होने कभी पाकिस्तान में रहने के सपने नही संजोए, न ही कभी पाकिस्तान में कितनी गरीबी है इस पर उनका कभी ध्यान गया। क्योंकि उन्हे अपने मुल्क, अपने देश के भविष्य से मतलब है। वह अपना मुकाबला विकसित मुल्क से करना चाहता है।पाकिस्तान अगर कोई नापाक हरकत करता है उसके लिए हमारे देश की शक्तिशाली सेना मौजूद है। जिसके सर्मथ पर उन्हे कभी कोई शक नही हुआ।
युवाओं का कहना है कि आज उन्हे डर सता रहा है कि उनके नेता आज उनके भविष्य के साथ कैसा खिलवाड़ कर रहे है। उन्हे क्यों धर्म के नाम पर लडवाने का काम किया जा रहा है। इससे उनकी जिंदगी बेहतर नही होने वाली। जिसका वह विरोध करते है।
परन्तु आज उन्हे अपनी ही सरकारों से डर लगने लगा है क्योंकि सरकारों को विरोध पसंद नही। विरोध करने पर उन्हे दंगाई घोषित कर दिया जाता है। उनके लिए समाज का एक वर्ग अलग ही सोच रखना शुरु कर देता है। जिसकी कभी उन्होने परिकल्पना नही की।
जबकि उनका विरोध केवल कुंभकरण की समान सोई हुई सरकारों को जगाने के लिए है। वह चाहते है कि उन्हे विदेशों में न जाना पड़े। वह भी चाहते है कि वह आराम से रात भर मजे में अपना वक्त गुजारे। उन्हे भी मनोरंजन अच्छा लगता है। इसलिए सरकार उनके भविष्य के प्रति सूचेत रहे। वह चाहते है कि सरकारे रोजगार के अच्छे साधान उपलब्ध करवाए। उन्हे दर दर की ठोकरे खाने को मजबूर न होना पडे। उनका कहना है कि सरकारें मुख्य मुद्दों पर ध्यान दे न कि मुद्दों से भटकाने के लिए हर रोज कोई नया शगूफा छोड़ा जाए।
नौजवानों को भी यह समझने की जरुरत है कि वह विरोध को विरोध की सीमा तक प्रगट करें। सच झूठ को समझें तभी अपना मत दें। कोई राय नही कि अलगाववादी उनका इस्तेमाल कर सकते है। जिससे सजग रहने की उन्हे जरुरत है।
खैर यह तो वक्त ही बताएगा कि युवाओं का सरकारों के प्रति यह रवइया किस करवट बैठता है। परन्तु यह बिलकुल सच है कि युवाओं का सरकारों के उदासहीन रवईए के प्रति मोह एक दम भंग हो चुका है। जिसके लिए सरकारों को अपनी सोच बदल कर युवाओं के प्रति सोचना होगा। युवाओं को अनसुना करके हम उज्जवल समाज की कभी संरचना नही कर सकते। आज युवा केवल रैलियों में नारे नही लगाना चाहते और न ही भीड का हिस्सा बनना चाहते है। क्योंकि वह जाग रहे है, वह उस दीए को जलाने की कौशिश कर रहे है जिसके लिए उन्होने दीए रौशन किए थे।
मनन सैनी