चंडीगढ़, 10 जनवरी:पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने केंद्र सरकार को पत्र लिख कर बायोमास पावर प्रोजेक्टों और बायोमास सोलर हाइब्रिड पावर प्रोजेक्टों के लिए वायबिलिटी गैप फंडिग (वी.जी.एफ.) के लिए पुन: माँग की है जिससे राज्य में पराली जलाने के रुझान पर रोक लगाई जा सके। उन्होंने कहा कि इस सम्बन्ध में राज्य सरकार द्वारा पहले ही प्रस्ताव केंद्र सरकार को सौंपा जा चुका है।
बिजली, नयी और नवीकरणीय ऊर्जा संबंधी केंद्रीय राज्य मंत्री आर.के. सिंह को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री ने पड़ाववार एकमुश्त वायबिलिटी गैप फंडिग के द्वारा बायोमास पावर प्रोजेक्टों के लिए स्कीमें/दिशा-निर्देश बनाने और विभिन्न मौकों पर राज्य सरकार के सुझाव मुताबिक नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के पायलट बायोमास सोलर हाइब्रिड पावर प्रोजैक्ट के प्रति उनके निजी दख़ल की माँग की है।कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने ज़ोर देकर कहा कि यह कदम पंजाब में पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की पालना करने में भी सहायक होंगे। उन्होंने एक बार फिर केंद्रीय मंत्रालय को बायोमास पावर प्रोजेक्टों के लिए प्रति मेगावॉट 5 करोड़ रुपए और बायोमास सोलर हाइब्रिड पावर प्रोजेक्टों के लिए प्रति मेगावाट 3.5 करोड़ रुपए मुहैया करवाने के लिए कहा जिससे पराली जलाने से पैदा होने वाले प्रदूषण की समस्या से पंजाब को निजात मिल सके।
मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा 5 फरवरी, 2019 को भी यह मुद्दा उठाया गया था और 150 मेगावाट के सामथ्र्य वाले बायोमास पावर प्रोजैक्टों के लिए 5 करोड़ प्रति मेगावॉट के हिसाब से वी.जी.एफ. को मंजूरी देने के लिए सैद्धांतिक मंजूरी माँगी थी। हालाँकि, मंत्रालय ने 6 मई को इस माँग के लिए स्वीकृति देते हुए कहा कि बायोमास पावर प्रोजैक्टों को वी.जी.एफ. मुहैया करवाने के लिए इस समय पर कोई स्कीम नहीं चल रही।अपने पत्र में कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने 6 नवंबर को केंद्रीय मंत्री के नेतृत्व में हुई मीटिंग को याद किया जहाँ अवशेष आदि को जलाने से सम्बन्धित मुद्दे विचारे गए। यह फ़ैसला किया गया था कि पंजाब सरकार द्वारा कृषि अवशेष (धान की पराली) पर अधारित पावर प्लांट स्थापित करने और सामुहिक अवशेष एकत्रित करने की प्रणाली सम्बन्धी प्रस्ताव सौंपेगी। साज़ो-सामान मेक इन इंडिया के दिशा-निर्देशों के मुताबिक खरीदा जा सकता है। सब्सिडी को प्लांट के चालू होने के साथ जोड़ा जायेगा। मिसाल के तौर पर यह यकीनी बनाया जाना चाहिए कि यह प्लांट प्रतिबद्ध खेती अवशेष का उपभोग करेंगे।
मुख्यमंत्री ने आगे बताया कि इसी तरह राज्य सरकार द्वारा इस मामले में विस्तृत तजवीज़ मंत्रालय के पास भेजी गई है।उन्होंने कहा कि दरअसल जैसे ही सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पराली जलाने का मामला सामने आया पंजाब सरकार द्वारा मंत्रालय को 12 दिसंबर, 2019 को फिर पत्र लिख कर वी.जी.एफ. के लिए नयी स्कीम बनाने की माँग की थी जैसे कि राज्य इसके बाद की सालाना योजनाएँ चाहता है।ऐसे फंडों की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले एक दशक के दौरान कृषि उत्पादन में बड़ी वृद्धि हुई है जिसके निष्कर्ष के तौर पर अनाज का अतिरिक्त उत्पादन हुआ है।
उन्होंने कहा कि पंजाब कृषि प्रधान राज्य होने के कारण हर साल 20 मिलियन टन धान की पराली का उत्पादन करता है जिसमें से 7.5 मिलियन टन को घरेलू उद्योगों में इस्तेमाल किया जाता है जबकि बाकी 12.5 मिलियन टन बायोमास करीब 1250 मेगावॉट बिजली के बराबर है।कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने आगे कहा कि बायोमास के द्वारा पैदा की गई बिजली की दरें पी.एस.ई.आर.सी. द्वारा मौजूदा वर्ष 2019-20 के लिए 8.64 रुपए प्रति किलोवॉट निर्धारित की गई हैं। उन्होंने कहा कि हालाँकि डिसकौम के द्वारा औसत बिजली खरीद 4.30 रुपए प्रति किलोवॉट है।
राज्य और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पराली जलाने की गंभीर समस्या और प्रदूषण की समस्या के हल के लिए उन्होंने धान की पराली पर आधारित बायोमास प्रोजैक्टों से अधिक से अधिक 5 रुपए प्रति किलोवॉट की कीमत पर बिजली खरीदने की इच्छा ज़ाहिर की है।मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में इस बात पर ज़ोर दिया कि जो 3.64 रुपए प्रति किलोवॉट का अंतर है वह डिवैल्पर को वी.जी.एफ. के उपबंध के द्वारा हल करने की ज़रूरत है।