बलात्कार के मामलों के लिए 7 फास्ट-ट्रैक अदालतें, बच्चों के विरुद्ध अपराधों के लिए तीन विशेष अदालतें और 10 अन्य फैमिली कोर्टों की स्थापना के लिए कैबिनेट द्वारा मंजूरी
चंडीगढ़, 9 जनवरी:
राज्य में व्यापक कानूनी सुधारों के मंतव्य से पंजाब सरकार द्वारा बलात्कार के मामलों में बिना देरी के इन्साफ और मुकदमों की प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए सात फास्ट-ट्रैक अदालतें और बच्चों के विरुद्ध अपराधिक मामलों में फ़ैसलों की प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिए तीन विशेष अदालतें स्थापित करने का फ़ैसला लिया गया है। इसी तरह राज्य के समूचे जि़लों में कानूनी प्रक्रिया की बेहतरी के लिए 10 अन्य पारिवारिक अदालतें स्थापित करने संबंधी फ़ैसला लिया गया है।
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह की अध्यक्षता अधीन आज पंजाब मंत्रीमंडल की हुई मीटिंग में यह फ़ैसले लिए गए।
पंजाब सरकार के एक प्रवक्ता ने यह जानकारी देते हुए बताया कि मुख्यमंत्री द्वारा राज्य में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को यकीनी बनाने के लिए अभिव्यक्त की गई प्रतिबद्धता के अंतर्गत यह कदम उठाए गए हैं।
मंत्रीमंडल द्वारा बलात्कार के मामलों के निपटारे के लिए सात फास्ट-ट्रैक अदालतों की स्थापना के लिए मंजूरी दी गई है जिनके कामकाज के लिए 70 पदों का सृजन किया जाएगा। इनमें से चार अदालतें लुधियाना में और एक-एक अदालत अमृतसर, जालंधर और फिऱोज़पुर में स्थापित होगी। प्रवक्ता के अनुसार अतिरिक्त और जि़ला सैशनज़ जजों के सात अतिरिक्त पद और सहायक अमले के 63 पदों के लिए कैबिनेट द्वारा मंजूरी दी गई है।
करीब 3.57 करोड़ रुपए के सालाना ख़र्च से स्थापित होने वाली यह अदालतें बलात्कार के लम्बित पड़े मामलों से निपटने के लिए क्रिमिनल लॉ (संशोधन) एक्ट, 2018 के उपबंधों और धाराओं को अमली रूप देंगी। इन अदालतों द्वारा ऐसे मामलों में मुकदमों के फ़ैसले दो महीने की समय-सीमा के अंदर करके लम्बित मामलों की संख्या घटाने के लिए भूमिका अदा की जायेगी। साल 2018 की सी.आर.पी.सी की धारा 173 में संशोधन के अनुसार बलात्कार मामलों के ट्रायल का फ़ैसला दो महीने के अंदर-अंदर किया जाना है।
पोस्को मामलों के लिए विशेष अदालतें –
एक अन्य फ़ैसले के अनुसार कैबिनेट द्वारा बच्चों को कामुक अपराधों से सुरक्षित रखने सम्बन्धी एक्ट (पोस्को एक्ट) के अंतर्गत दर्ज मामलों के मुकदमों के लिए सालाना 2.57 करोड़ के अनुमानित ख़र्च से विशेष अदालतों की स्थापना के लिए 45 पदों की सृजना करने के लिए मंजूरी दी गई है।
साल 2018 में सी.आर.पी.सी की धारा 173 के संशोधन के अंतर्गत बलात्कार के मामलों में ट्रायल दो महीने के अंदर मुकम्मल करने के उपबंध हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इच्छा ज़ाहिर की गई थी कि उन राज्य सरकारों द्वारा बच्चों के साथ हुए बलात्कार के मामलों के मुकदमों के लिए विशेष अदालतें स्थापित की जाएँ, जहाँ ऐसे लम्बित पड़े मामलों की संख्या 100 से ज्य़ादा है।
मौजूदा समय में बच्चों के साथ बलात्कार के लम्बित पड़े मामलों की संख्या लुधियाना में 206 और जालंधर में 125 है जिसको ध्यान में रखते हुए कैबिनेट द्वारा लुधियाना में दो और जालंधर में एक स्पैशल कोर्ट की स्थापना के लिए मंजूरी दी गई है। कैबिनेट द्वारा इसके साथ ही इन अदालतों के लिए अतिरिक्त जि़ला जजों और उप जि़ला अटार्नी की तीन-तीन पदों और 39 सहायक अमले के पदों की (कुल 45 पदों ) सृजना करने के लिए मंजूरी दी गई है।
बाकी जि़लों में फैमिली कोर्टें –
इसी दौरान कैबिनेट द्वारा राज्य के 10 जि़लों में 5.55 करोड़ की सालाना अनुमानित लागत से 10 पारिवारिक अदालतों की स्थापना के लिए मंजूरी दी गई है। कैबिनेट द्वारा जि़ला जज/जि़ला सैशनज़ जज के नेतृत्व में (8 सहायक अमला सदस्यों समेत) चलने वाली इन अदालतों के लिए 90 पदों की सृजना करने के लिए मंजूरी दी गई है।
वर्तमान समय में पंजाब के 12 जि़लों में यह फैमिली कोर्टें चल रही हैं। यह नयी अदालतें बाकी 10 जि़लों में स्थापित होंगी जिनमें फतेहगढ़ साहिब, फिऱोज़पुर, फाजि़ल्का, कपूरथला, मानसा, रूपनगर, संगरूर, श्री मुक्तसर साहिब, एस.ए.एस नगर मोहाली और तरन तारन शामिल हैं। इन अदलतों के कार्यशील होने से विवाह सम्बन्धी लम्बित मामलों के निपटारे से बड़ी संख्या में लोगों को राहत मिलेगी।
फैमिली कोर्ट मुख्य रूप में विवाह से सम्बन्धित मामलों जैसे विवाह के ख़ात्मे, वैवाहिक हकों की बहाली, वैवाहिक पक्षों की जायदाद, बच्चों के पालन-पोषण से जुड़े हकों और रख-रखाव के मामलों का निपटारा किया जाता है।