सभी पार्टियों ने संकट की घड़ी में सभी राजनैतिक मतभेद भुलाने की ज़रूरत पर दिया ज़ोर, कहा, ‘‘राजनीति तो बाद में हो सकती है’’
चंडीगढ़, 2 फरवरी: पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह द्वारा ‘‘इस लड़ाई में हम सभी एकजुट हैं’’ के दिए गए संदेश के साथ मंगलवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक एक ऐसा अनूठा अवसर है जिसमें सभी राजनैतिक पार्टियों की तरफ से अपने मतभेद भुलाकर खेती कानूनों के विरुद्ध संघर्ष के लिए एकमत होने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए किसानों का समर्थन करने का फ़ैसला किया गया।
मीटिंग में सभी पार्टियों के नुमायंदों द्वारा लाल किले में हुई हिंसा की स्वतंत्र जांच से लेकर संकट के हल के लिए प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री के दख़ल की माँग सम्बन्धी सांझी मीटिंग और दिल्ली सरहद पर स्टेट ऑब्ज़र्वर की नियुक्ति, राजनैतिक बयान दिए बगैर किसानी आंदोलन में शामिल होने समेत अन्य मुद्दों सम्बन्धी सुझाव दिए गए।
इस मीटिंग का भाजपा द्वारा बायकॉट किया गया परन्तु कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, लोक इन्साफ पार्टी, शिरोमणि अकाली दल डेमोक्रेटिक पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, सी.पी.आई. और सी.पी.आई. (एम) पार्टियों ने शिरकत की और आम आदमी पार्टी की किसानों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए पंजाब पुलिस को दिल्ली सरहदों पर भेजने की अनुचित माँग न मानने पर आप द्वारा वॉकआउट किया गया।
किसानी आंदोलन के दौरान अपनी जान गंवाने वाले किसानों को श्रद्धाँजलि देते हुए 2 मिनट का मौन रखकर मीटिंग की शुरुआत की गई। मुख्यमंत्री ने कहा कि इन विरोध प्रदर्शनों में अब तक पंजाब के 88 किसान अपनी जान गंवा चुके हैं।
‘‘पंजाब के विरुद्ध शुरु की गई बड़ी साजिश’’ के खि़लाफ़ सर्वसम्मति की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रधान सुनील जाखड़ ने कहा कि जब भी पंजाब को किसी बाहरी या अंदरूनी चुनौती का सामना करना पड़ा है तो हर पंजाबी ने एक होकर इसका सामना किया है। उन्होंने कहा कि हमारे राजनैतिक मतभेद बने रहेंगे, परन्तु इस संकट की घड़ी में हम सभी को फिर से एकजुट होने की ज़रूरत है। उन्होंने भाजपा द्वारा मीटिंग का बायकॉट करने के फ़ैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि उनको अपने विचार सामने रखने चाहिए थे। उन्होंने बताया कि पंजाब विधानसभा ने खेती कानूनों को नकारते हुए सर्वसम्मति के साथ एक प्रस्ताव पास किया था और सभी पार्टियाँ मुख्यमंत्री के साथ राज्यपाल के पास गई थीं।
जाखड़ ने दिल्ली सरहद पर मौजूदा स्थिति बारे केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए स्टील की छड़ों, हथियारबंद रक्षक, सीमेंट के साथ की गई नाकाबंदी और नोकदार कीलों के साथ खड़े दिल्ली पुलिस के जवानों की आज मीडिया में आईं तस्वीरों की तरफ ध्यान दिलाया। इन तस्वीरों को भयानक बताते हुए उन्होंने कहा कि यह तस्वीरें गलवान घाटी में मौजूद चीनी सेना की याद दिलाती हैं। उन्होंने कहा की लाल $िकले में जो कुछ हुआ वह निंदनीय था परन्तु किसानों के आंदोलन को बदनाम करने और हिंसा के लिए जि़म्मेदार लोगों की पहचान करने के लिए सही जांच होनी चाहिए। उन्होंने किसानों को गुंडा, आतंकवादी, खालिस्तानी और राष्ट्र विरोधी नामों के साथ संबोधन करने पर भारत सरकार की कड़ी निंदा की।
जाखड़ ने रेल सेवाओं को निरस्त, आर.डी.एफ. बंद करने आदि समेत आर्थिक नाकेबन्दी के द्वारा पंजाब के किसानों को अपना हथियार बनाकर पंजाब पर झूठे दोष लगाने के लिए केंद्र सरकार की निंदा की। उन्होंने कहा कि इस आंदोलन के कारण पंजाब को 36000 करोड़ रुपए का नुक्सान हुआ है। किसानों के शांतमयी आंदोलन के लिए प्रशंसा करते हुए, जिसकी सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रशंसा की, श्री जाखड़ ने कहा कि काले खेती कानून जारी होने के बाद जो विरोध प्रदर्शन चल रहे थे, वह अब सुनामी का रूप धारण कर चुके हैं और दिल्ली की सरहदों तक पहुँच गए हैं।
जाखड़ ने लाल $िकले में निशान साहिब का झंडा लहराने के लिए निंदा करने पर संघ परिवार की खिल्ली उड़ाते हुए दोष लगाया कि आर.एस.एस. जिसने कई दशकों से अपने मुख्यालयों में राष्ट्रीय झंडा नहीं लहराया, वह अब पंजाब को अलग करने के उद्देश्य से ये घटिया चालें चल रहा है।
पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रधान ने सभी पार्टियों से अपील की कि वह किसानों को खेती कानूनों से बचाने के लिए एकजुट हों जो कि शांता कुमार कमेटी की भावना अनुसार बनाए गए हैं। उन्होंने आगे कहा कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी एम.एस.पी. को देश की आर्थिकता पर सबसे बड़ा बोझ करार दिया है। उन्होंने खेती कानूनों को रद्द करने और किसानों के सुरक्षित घर वापस लौटने की माँग करते हुए कहा कि राजनैतिक तौर पर भाजपा को अलग-थलग करने की रणनीति के साथ हमें देश को संदेश देना चाहिए कि पंजाब एकजुट है।
जाखड़ के विचारों की हिमायत करते हुए आम आदमी पार्टी (आप) के भगवंत मान ने कहा कि जिस तरह बैरीकेट लगाए गए हैं और दिल्ली बॉर्डर पर सडक़ों को उखाड़ा गया है उससे ऐसा लगता है कि पंजाब के किसान दुश्मन की सरहद के पार बैठे हैं और हरियाणा उनको रोकने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि किसानों को उनके लोकतंात्रिक अधिकारों के प्रयोग से रोकने के लिए सब कुछ किया जा रहा है। श्री मान ने कहा की लाल $िकले की हिंसा पहले से योजनाबद्ध लगती है जहाँ उच्च सुरक्षा वाले स्मारक को सुरक्षा बलों ने ऐसे ही छोड़ दिया जबकि एक बड़ा मीडिया समूह वहां मौजूद था।
आप नेता ने सुझाव दिया कि सभी पंजाब पार्टियों के नुमायंदों को मिल कर प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री के साथ मीटिंग करके उन पर दबाव बनाया जाये क्योंकि उनके दखल से बिना मसला हल नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि पंजाब की नुमायंदगी के लिए एक सांझी उच्च ताकत वाली कमेटी बनाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हम अपनी राजनीति बाद में कर सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि इस मौके किसानों को सभी के समर्थन की जरूरत है। उनको इस संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए एक नेता, एक कप्तान की जरूरत है।
संकट की इस घड़ी में किसानों को इकठ्ठा होकर लडऩे के लिए राजनैतिक हितों से ऊपर उठने की जरूरत पर जोर देते हुये श्री मान ने कहा कि पंजाब सरकार को किसानों के साथ तालमेल करने और उनकी सहायता के लिए दिल्ली में एक दफ्तर स्थापित करना चाहिए। उन्होंने सभी पार्टियों से अपील की कि वह अपने संसद सदस्यों को संसद भवन के अंदर और बाहर खेती कानूनों का सामुहिक विरोध करने के लिए कहें।
आप के अमन अरोड़ा ने सुझाव दिया कि पंजाब को केरला की तरह खरीद शुरू करनी चाहिए जबकि हरपाल सिंह चीमा ने कहा कि यदि प्रधानमंत्री मीटिंग के लिए समय नहीं देते तो सभी को उनकी रिहायश पर जाकर धरना देना चाहिए।
शिरोमणि अकाली दल के नेता प्रेम सिंह चन्दूमाजरा ने सुझाव दिया कि गणतंत्र दिवस के मौके लाल किले में हुई हिंसा पीछे पूरी साजिश का पर्दाफाश करने के लिए एक सेवामुक्त जज के अधीन एक स्वतंत्र कमीशन स्थापित किया जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि किसानों की मारपीट करने वाले पुलिस की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि यदि केंद्र सरकार ऐसा कमीशन नहीं लाती तो पंजाब सरकार को ऐसा करना चाहिए। उन्होंने दिल्ली में एक सर्वदलीय विरोध प्रदर्शन और राज्य सरकार की तरफ से इस आंदोलन में जानें गंवा चुके किसानों के परिवारों के सभी कर्जे माफ करने का भी सुझाव दिया।
शिरोमणि अकाली दल के महेशइन्दर सिंह ग्रेवाल ने जोर देकर कहा कि केंद्र और किसानों के दरमियान रुकावट को दूर करना पड़ेगा। संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचाने की आज्ञा नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा कि पंजाब की तरफ से सी.बी.आई. से सहमति वापिस लेने के बावजूद हाल ही में एजेंसी की तरफ से राज्य सरकार को सूचित किये बिना गोदामों पर छापे मारे गए। सुखदेव सिंह ढींडसा ने भी राष्ट्र के संघीय ढांचे को कमजोर करने की योजनाबद्ध कोशिशों पर दुख प्रकटाया जो खेती कानूनों का मसला हल होने के बाद भी एक सबसे बड़ा खतरा बना बनी हुयी हैं।
यह गौर करते हुए कि केंद्र में बैठी भाजपा सरकार पंजाब को हाशिये पर धकेल रही है, पंजाब एकता पार्टी के सुखपाल सिंह खैहरा ने कहा कि राज्य सरकार को दिल्ली सरहद पर ओबजर्वर नियुक्त करना चाहिए। उन्होंने दिल्ली सरकार के से गणतंत्र दिवस हिंसा की जांच करवाने का भी न्योता दिया।
लोक इन्साफ पार्टी के सिमरनजीत सिंह बैंस ने सभी पार्टियोंं के बीच सीजफायर (बयानबाजी बंद करने) की जरूरत पर जोर देते हुये कहा, ‘जब किसान यूनियनें अपने मतभेदों को भुला कर इक_े हो सकती हैं तो हम क्यों नहीं?’ सभी पार्टियों के नुमायंदों को दिल्ली बार्डर पर जाकर बिना स्टेज पर चढ़े किसानों के मनोबल को बढ़ाने के लिए बैठना चाहिए। वह प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के साथ भी मीटिंग के हक में थे। उन्होंने पंजाब और पंजाबियों के खिलाफ नफरत फैलाने से रोकने के लिए मीडिया पर भी कुछ कंट्रोल करने की वकालत की।
बहुजन समाज पार्टी के जसवीर सिंह गढ़ी ने सभी दलों आगे रखे प्रस्ताव की अपनी पार्टी की तरफ से पूर्ण तौर पर हिमायत दी।
सी.पी.आई. के कामरेड बंत सिंह बराड़ ने किसानी संघर्ष की ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाते हुये कहा कि केंद्र को सख्त संदेश भेजने के लिए सभी पंजाबियों को इकठ्ठा होकर इन काले कानूनों के खिलाफ संघर्ष करने वालों का समर्थन करना चाहिए।
सी.पी.आई. (एम.) के कामरेड सुखविन्दर सिंह ने कहा कि केंद्र सभी विरोधी दलों को निशाना बना रहा है जिससे ऐसे व्यवहार का सामुहिक तौर पर डटकर मुकाबला करना जरूरी हो जाता है। उन्होंने आगे कहा कि केंद्र की तरफ से सभी संवैधानिक मूल्यों को ताक पर रखते हुए हिंदू राष्ट्र की तरफ कदम बढ़ाए जा रहे हैं और खेती कानूनों का असली मकसद विश्व व्यापार संगठन के दबाव के नीचे कृषि को तबाह करना है।
कुछ वक्ताओं की तरफ से आंदोलन में विशेष के तौर पर राकेश टिकैत की भूमिका की विशेष तौर पर चर्चा की गई और कहा गया कि उनके अश्रूओं ने आंदोलन को मजबूती दी है जिसे गणतंत्र दिवस की घटनाओं के कारण ठेस पहुंची थी।
मुख्यमंत्री की तरफ से अपने शुरुआत संक्षिप्त संबोधन के बाद राज्य के वित्त कमिशनर विकास ने खेती कानूनों की तरफ से किसानों और पंजाब की कृषि प्रणाली को होने वाले नुकसान पर रौशनी डाली और राज्य सरकार की तरफ से इन कानूनों के बुरे प्रभावों का असर खत्म करने के लिए उठाये जा रहे कदमों, जिनमें विधान सभा में पास किये गए संशोधन कानून भी शामिल हैं, के बारे विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे सम्बन्धी प्रधानमंत्री को लगातार लिखा जा रहा है जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि प्रांतीय कैबिनेट की तरफ से इन कानूनों पर सख्त ऐतराज प्रकट करते हुए एक प्रस्ताव भी पास किया गया था जिसमें इन कानूनों को रद्द करने की माँग की गई थी। उन्होंने आगे बताया कि केंद्र सरकार की तरफ पास किये यह कानून मुल्क के संघीय ढांचे के खिलाफ हैं और पंजाब विधान सभा की तरफ पास किये संशोधन संवैधानिक तौर पर जायज हैं।