कहा, धारा 370 का रद्द होना कोई करिश्मा नहीं, इससे केवल निवासियों और कश्मीरी नेताओं को रास्ते से भटकाया गया
आतंकवाद का सिफऱ् ताकत से सफाया नहीं किया जा सकता, इससे निपटने के लिए सख्त और नरम दोनों ताकतों हैं ज़रूरी
सीनियर भाजपा नेता और पार्टी के जनरल सचिव राम माधव ने की फ़ैसले की वकालत, राष्ट्रवाद बहुत जल्द किया जायेगा बहाल
कांग्रेसी सांसद मनीष तिवाड़ी ने धारा 370 के रद्द को बहुत ही निंदनीय कोशिश बताया
चंडीगढ़, 15 दिसंबर। कश्मीर के मौजूदा हालातों को अति संवेदनशील बताते हुये, जोकि किसी भी समय भडक़ सकते हैं, कश्मीर माहिरों ने असंवैधानिक ढंग से धारा 370 को रद्द करने के लिए केंद्र के फ़ैसले की आलोचना की क्योंकि यह धारा भारत के जम्मू-कश्मीर के साथ संबंधों को मज़बूत करती है।
आर.एस.एस. विचारक कम भाजपा के राष्ट्रीय जनरल जनरल सचिव राम माधव और कांग्रेस के सांसद मनीष तिवाड़ी के साथ धारा 370 और आतंकवाद के ख़ात्मे पर पैनल विचार-चर्चा के दौरान आर एंड ए.डब्ल्यू. प्रमुख ए.एस. दुलत और मनोज जोशी ने ज़ोर देकर कहा कि पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का इंसानियत, लोकतंत्र और कश्मीरियत का नारा ही इस उलझे मसले का एकमात्र हल था।
दुलत ने कहा कि कश्मीर बुरी तरह बेजान है और राज्य के निवासी दिल्ली से निराशा की भावना महसूस कर रहे हैं।
विचार-विमर्श में हिस्सा लेते हुए राम माधव ने कहा कि धारा 370 को लोकतंत्रीय तरीके से रद्द किया गया था, जिसमें यह बताया गया था कि पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुला जैसे राजनैतिक कैदियों को जल्द रिहा किया जायेगा। माधव ने कहा कि कश्मीर में राजनैतिक गतिविधियों को जारी रखने की प्रक्रिया जारी है।
पूर्व रॉ चीफ़ दुलत के कश्मीर में शांत हालात न मानने के प्रगटावे पर बोलते हुये माधव ने ज़ोर देकर कहा कि कश्मीरियों को कभी भी शांत नहीं जाना जाता और वह हमेशा छोटे-छोटे उकसाहट करते रहते हैं।
कश्मीरी सत्तर सालों से आर्टीकल 370 के साथ जी रहे हैं और अब वह इसके बिना जि़ंदगी का तजुर्बा कर रहे हैं। यह सरकार द्वारा उठाया एक दलेराना कदम है और मुझे यकीन है कि नयी स्थिति इसके विकास और भारत के साथ इस क्षेत्र के पूर्ण एकीकरण को यकीनी बनाऐगी।
अपनी बात पर ज़ोर देते हुये सीनियर कांग्रेसी नेता मनीष तिवाड़ी ने केंद्र को दोष लगाते हुये कहा कि हमारे संविधान की भावना को कुचल कर एक राज्य को शासित प्रदेश में बाँट कर केंद्र सरकार द्वारा एक ख़तरनाक मिसाल कायम की गई। हम राज्यों का एक संघ हैं और जम्मू -कश्मीर को बाँट कर जो किया गया है वह सबसे अधिक निंदनीय कदम है जो हमारे संविधान और राजनीति के लिए गंभीर नतीजों का परिणाम है।
पैनल में दोनों माहिरों के विचारों पर बोलते हुये तिवाड़ी ने आगे कहा कि बग़ावत का आतंकवाद से कोई लेना-देना नहीं होता और इस कार्यवाही ने संविधान में दर्ज सभी नियमों को उल्टा कर रख दिया है। सीनियर कांग्रेसी नेता ने कहा कि आतंकवाद, जिसका केंद्र सरकार एक ही झटके में ख़त्म करने का दावा करती है, का असली कारण पाकिस्तान का विभाजन और बंग्लादेश की सृजन करना है। हमारे दुश्मन पड़ोसी ने हमेशा भारत को हज़ारों ज़ख्म देकर ख़ून बहाने की नीति अपनाई है।
इस फ़ैसले में कुछ बुनियादी गलतियाँ होने की बात पर ज़ोर देते हुये उन्होंने आगे कहा कि केंद्र के इस बेवकूफ़ फ़ैसले से मुख्य धारा के कश्मीरी नेताओं को भी दूर कर दिया है, परन्तु ईश्वर करे कुछ ऐसी अप्रिय घटना ना घटे और हालात इतने दुखद न बन जाएँ कि हमारे पास बात करने के लिए कुछ ही रहे।
इससे पहले एक सवाल का जवाब देते हुये श्री माधव ने स्पष्ट किया कि पी.डी.पी के साथ भाजपा का गठजोड़ पूरी तरह विकास और सुरक्षा एजंडे पर आपसी सहमति के आधार पर हुआ है। मैडम महबूबा मुफ्ती के साथ डेढ़ साल काम करने के बाद, हमें कश्मीर में अपने सुरक्षा एजेंडे को आगे बढ़ाने में कुछ मुश्किलों महसूस हुई और हम एक पार्टी के तौर पर गठजोड़ छोडऩे और राष्ट्रपति शासन को लाने का फ़ैसला किया।
विचार-विमर्श में हिस्सा लेते हुये प्रसिद्ध पत्रकार और राज्य माहिर मनोज जोशी ने बताया कि केंद्र का हर चीज़ को एक ही रंग में रंगने का उद्देश्य बुरी तरह असफल हुआ है क्योंकि हम अलग पहचान वाले राज्यों के देश में बसते हैं। भारत में यह संभव है कि आपको अपनी सांस्कृतिक विरासत पर मान कर सकेें और फिर भी अपने वतन पर भी उसी तरह मान महसूस कर सकें। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि जम्मू -कश्मीर के हिंदूयों में भी देश के दूसरे हिस्सों में बसते हिंदूयों की अपेक्षा हिंदु धर्म के प्रति अलग भावना है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुये उन्होंने कहा कि आज़ादी के तुरंत बाद जम्मू-कश्मीर को शामिल करने का फ़ैसला उस समय की स्थितियों के अंतर्गत लागू हुआ था। उन्होंने कहा कि उस वक्त भारत एक नयी बना राष्ट्र था और अपनी सरहदों की सुरक्षा करने के काबिल नहीं था। उन्होंने यह भी कहा कि कश्मीर को भारत में मिलाने के लिए कुछ रियायतों दिए जाने की ज़रूरत थी और इस उद्देश्य पूर्ति के लिए सख्त और नरम दोनों किस्म के रास्तों के समिश्रण की वकालत की।