डा खादर वली ने मूल अनाजों से रोज मुक्त जीवन संबंधी जानकारी दी
गुरदासपुर। खेती विरासत मिशन की ओर से स्थानीय गोल्डन कालेज आफ इंजिनिरिंग एंड टैक्नालोजी इंस्टीच्यूट में मूल अनाजों से रोग मुक्त जीवन जीवन विषय पर सैमीनार करवाया गया। दवाओं की बजाए भोजन के जरिए मरीजों का इलाज करने वाले डाक्टर खादर वली ने इस सैमीनार को संबोधन किया
तीन दिन के दौरे पर मैसूर से पंजाब आए मिल्ट मैन के नाम से मश्हूर हुए डाक्टर खादर वली ने अपने संबोधन में कहा कि हरी क्रांति आने से पहले भारत निवासियों का भोजन गेंहू या चावल नही थे। वह मोटे अनाज मक्की, जवार, बाजरा, रागी, कंगनी, कोधरा, स्वांक आदि खाते थे। डाक्टर के अनुसार यह मोटे अनाज सारे भारत में बड़ी आसानी से उगाए जा सकते है।
एक किलों मोटे अनाज को उगाने के लिए सिर्फ दो सौ लीटर पानी की जरुरत है जबकि एक किलो चावल उगाने के लिए नौ हजार लीटर पानी की जरुरत होती है। डाक्टर खादर अली के अनुसार हमे तंदरुस्त रहने के लिए गेंहू, चावल का त्याग कर दोबारा से मोटे अनाज को खुराक का हिस्सा बनाना पड़ेगा। मोटे अनाजों को खुराक की लड़ी में हिस्सा बनाने का फैसला स्वस्थ्य पक्ष, किसान पक्ष और वातावरण पक्ष में होगा।
इससे पहले डा खादर वली ने जानकारी संयुक्त करते हुए खेती विरासत मिश्न के मनभावन सिंह काहलों ने बताया कि मैसूर में डा खादर वली के पास रोजाना देश के अलग अलग हिस्सों से सैकंडो रोगी पहुंचते है। इन मरीजों में ज्यादातर वह मरीज होते है जिन्हे एलोपैथी चिकित्सा विधी से ठीक होने से जबाव मिल चुका था। डा वली रोगी की परची के उपर दवाईयों की बजाए भोजन लिखते है।
उन्होने बताया कि डा वली ने बीएससी और एमएससी करने के बाद इंडियन इंस्टिच्यूट आफ सांइस,बैंगलोर से स्टीराईड्ज पर पीएचडी की है।इसके बाद सैंट्रल फूड टैकनालोजिकल रिसर्च इंस्टीच्यूट में बतौर सांइसदान तीन साल से काम किया है। बाद में वह अमेरिका चले गए और मशहूर कंपनी डूपोट में नौकरी करने लगे। 1986 में जब वह अमेरिका में थे तो उनके सामने छह साल की बच्ची का एक केस आया जिसे माहवारी शुरु हो गई। इस घटना ने डाक्टर को झंजोड़ कर रख दिया। जब जांच पड़ताल की तो पता चला तो पाया कि सब बिमरारिया की जड़ हमारे खाने वाले भोजन में के बिगड़ने से है। डाक्टर ने नौकरी छोड़दी और भारत आकर अपने देश वासियों को भोजन में हुई गड़बड़ी संबंधी लोगो को जागरुक करना शुरु कर दिया।
इस मौके पर मनभावन काहलों की कविता और वारतक की पुस्तक एकामाई भी रीलिज की गई। प्रोग्राम में स्वदेशी हट्ट गुरदासपुर से राजीव कोहली, खेती विरासत मिशन से उमेंद्र दत्त
और गुरमुख सिंह रंगीलपुर भी मौजूद थे।