कानून अपना काम करेगा और पुलिस पूरी गहराई में निष्पक्ष जांच करेगी
चंडीगढ़, 7 मई:पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने गुरूवार को पूर्व डी.जी.पी. सुमेध सिंह सैनी की तरफ से अपने खि़लाफ़ 1991 के एक अगवा केस में एफ.आई.आर. दर्ज होने को राजनैतिक हितों से प्रेरित होने के लगाऐ दोषों को सिरे से रद्द कर दिया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राजनैतिक दखलअन्दाज़ी का सवाल ही नहीं पैदा होता और कानून इस मामले में अपना काम करेगा।
पुलिस के प्रवक्ता ने बताया कि सुमेध सैनी के खि़लाफ़ केस बलवंत सिंह मुलतानी की गुमशुदगी का है जो पूरी तरह पीडि़त के भाई पलविन्दर सिंह मुलतानी निवासी जालंधर की तरफ से पाई ताज़ा आवेदन पर आधारित है।
पलविन्दर मुलतानी की शिकायत पर मोहाली में बुधवार को धारा 364 (कत्ल के इरादे से अगवा करने), 201 (सबूत को गायब करना), 344 (ग़ैर कानूनी हिरासत में रखना) 330 (दबाव बना कर इकबालिया बयान लेना) और 120 -बी (अपराधिक साजि़स रचना) के अंतर्गत केस दर्ज किया गया। पुलिस को मंगलवार को ताज़ा शिकायत मिली थी।
प्रवक्ता ने खुलासा करते हुये कहा कि शिकायतकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के 7 दिसंबर, 2011 को आदेशों के पैरा 80 का हवाला दिया, ‘जिस आवेदक ने सी.आर.पी.सी. की धारा 482 के अंतर्गत याचिका दाखि़ल की है, ताज़ा कार्यवाही करवा सकता अगर कानून में इजाज़त है।’
शिकायतकर्ता ने अपनी शिकायत में कहा है कि मुलजिम व्यक्तियों की गैर-कानूनी कार्यवाहियों स्पष्ट तौर पर सोच समझ कर अपराध किये जाने का खुलासा करती हैं जैसे कि सी.बी.आई. ने प्राथमिक जांच में साबित किया है और इसलिए यह पुलिस की गंभीर जि़म्मेदारी बनती है कि वह ‘ललिता कुमारी बनाम यू.पी. स्टेट और अन्य राज्यों के मामले’ में सुप्रीम कोर्ट के विशेष दिशा निर्देशों के अनुसार मुलजिमों के विरुद्ध इन घिनौनी कार्रवाईयों के लिए केस दर्ज करे।
पलविन्दर मुलतानी ने अपनी शिकायत में कहा कि बलवंत मुलतानी को 11 दिसंबर, 1991 को मोहाली में उस समय उसकी रिहायश से उठा लिया गया था और उस समय पर एस.एस.पी. चंडीगढ़ सुमेध सिंह सैनी पुत्र रोमेश चंद्र सैनी के आदेशों पर सैक्टर 17 चंडीगढ़ में थाने ले जाया गया था। शिकायतकर्ता ने कहा, ‘सुमेध सिंह सैनी की दहशत और प्रभाव के कारण उसकी रिहाई के लिए की गई सभी कोशिशों के बावजूद परिवार उसे वापस लाने में असफल रहा।’ शिकायतकर्ता ने आगे कहा कि सैनी की सेवा मुक्ति के बाद उन्होंने इंसाफ़ की लड़ाई के लिए अपनी कोशिशें फिर शुरू करने की हिम्मत जुटायी।
उनके निरंतर यत्नों के परिणामस्वरूप आखिरकार पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के दिशा निर्देशों के अंतर्गत एक प्राथमिक जांच की गई जिसके बाद सी.बी.आई. चंडीगढ़ के द्वारा आई.पी.सी. की धारा 120 (बी), 364, 343, 330, 167 और 193 के अंतर्गत एफआईआर नंबर आर.सी 512008 (एस) 0010 तारीख़ 02 -07 -2008 दर्ज की गई। शिकायतकर्ता ने आगे कहा कि हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसने हाई कोर्ट के आदेशों को इस आधार पर रद्द कर दिया कि हाई कोर्ट के बैंच के पास इस केस का निपटारा करने के लिए अधिकार क्षेत्र की कमी है और नतीजे के तौर पर सी.बी.आई. की तरफ से इन आदेशों के आधार पर दर्ज एफ.आई.आर. को सिफऱ् तकनीकी आधार पर रद्द कर दिया गया था।
शिकायतकर्ता ने बताया कि हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने परिवार को नये सिरे से कार्यवाही करने की आज़ादी दी थी और मामले की योग्यता पर कोई टिप्पणी या चर्चा भी नहीं की थी।