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पठानकोट-जोगिंद्रनगर नैरोगेज के बूढ़े रेल इंजनों को बाय-बाय करेगा रेलवे, नए 2 इंजन मिले

पठानकोट-जोगिंद्रनगर नैरोगेज के बूढ़े रेल इंजनों को बाय-बाय करेगा रेलवे, नए 2 इंजन मिले
  • PublishedFebruary 21, 2020

12 नए इंजनों को बदलने की कवायद शुरू, मुंबई के परेल में बन रहे नए इंजन।

नवदीप शर्मा,

पठानकोट। पंजाब और हिमाचल प्रदेश के बीच नैरोगेज रेलवे को मजबूत करने के लिए नार्दन रेलवे ने बूढ़े हो चुके बारह रेल इंजनों को बाय-बाय कहने का मन बना लिया है। 2 महीने में दूसरा नया इंजन पठानकोट-जोगिंद्रनगर सेक्शन को मिल चुका है, शुक्रवार को परेल (मुंबई) लोको वर्कशॉप से नया इंजन पठानकोट की लोको शेड पहुंच गया। इंजन को हिमाचल की हसीन वादियों में भेजने से पहले इंजीनियरिंग विभाग के अधिकारियों के नेतृत्व में ट्रायल लिया जाएगा और फिट होने के बाद इसे ट्रैक पर भेजा जाएगा।

इसके इलावा आने वाले डेढ़ वर्ष में पठानकोट लोको को 12 और नए इंजन मिलेंगे जिन्हें जोड़ने (असैंबल) करने का काम शुरु हो गया है। रेल इंजीनियरों की मानें तो नए तैयार होने वाले इंजन अत्याधुनिक तकनीक से लैस हैं। इनकी आयु 35 वर्ष होगी। रेलवे को उम्मीद है कि नए इंजन जब पठानकोट से पालमपुर के बीच की हसीन वादियों से डिब्बों को लेकर निकलेंगे तो उनका दम नहीं फूलेगा।

रोजाना 21 हजार यात्री करते हैं सफर
पठानकोट से पालमपुर व जोगिन्द्र नगर के बीच हर रोज 14 रेल गाडियां आवागमन करती हैं। इन रेल गाड़ियों में 21 हजार रेल यात्री रोज सफर करते हैं। इस प्रकार यह रेल जहां पठानकोट की अर्थ व्यवस्था का बड़ा हिस्सा है वहीं हिमाचल प्रदेश में करीब 100 किलोमीटर परिधि में बसे लोगों के लिए लाइफ लाइन भी है। इस ट्रैक पर नए रेल इंजनों की मांग लगातार की जा रही थी परंतु फंड के अभाव में रेलवे यह जोखिम ले पाने के मूड में नहीं था। यही कारण है कि इस रुट के रेल यात्रियों को अनेक बार इंजन के फेल हो जाने के कारण अपना सफर बीच में ही रोक देना पड़ा था।

रुट के सत्रह इंजन पूरी कर चुके हैं मियाद
रेलवे के अनुसार नैरोगेज इंजन पर चलने वाले इंजन की आयु 36 साल मानी गई है। पठानकोट-जोगिन्द्र नगर के बीच नैरोगेज रेल ट्रैक पर चल रहे सत्रह इंजनों में से अधिकांश अपनी आयु पूरी कर चुके हैं। 1976 में इस ट्रैक को 5 इंजन मिले थे जो आज की डेट में 44 साल पुराने हो चुके हैं। साल 1977 में ट्रैक को 5 इंजन मिले थे जो इस समय 43 साल के हो चुके हैं। साल 1981 में इस रुट को 5 अन्य इंजन मिले थे जिनकी आयु 39 साल की है, जबकि साल 1982 में इस रुट को 2 इंजन मिले थे जिनकी आयु 38 साल हो चुकी है। यह इंजन औसतन 34 साल चलने थे जबकि इनमें से 15 को आयु पूरी होने के बाद भी लगातार चलाया जा रहा है।

सुरक्षा के लिहाज से अहम है 716-जेडडीएम-3
मुंबई की परेल वर्कशॉप में तैयार होकर पठानकोट की लोको में पहुंचा इंजन नंबर 716 जेडडीएम-3 सुरक्षा की दृष्टि से अहम है। वर्तमान समय में नैरोगेज सेक्शन पर दौड़ रहे इंजनों का कैबिन एक ही तरफ है और ड्राइवर के आगे काफी लंबा बोनट है जिस कारण ड्राइवर को आगे ज्यादा नजर रखनी पड़ती है। दूसरा कैबिन एक ही तरफ होने के कारण स्टेश्न पर शंटिंग करने में समय ज्यादा लगता है जिस कारण कई बार ट्रेन लेट हो जाती है। नए इंजन के दोनों और कैबिन बना है। यानि की ट्रेन किसी भी साइड पर खड़ी हो इंजन को बदलकर केवल आगे ही लगाना है ओर इसके बाद इसे सिग्नल देकर रवाना किया जा सकता है। दूसरा इंजन के आगे बोनट नहीं है जिसका ड्राइवर को बहुत फायदा है। ड्राइवर अपने कैबिन से ही सीधे ट्रैक पर नजर रख सकेगा और उसे पांच मीटर की दूरी पर भी ट्रैक साफ दिखाई देगा।

पठानकोट रेलवे लोको अधिकारी ने बताया कि परेल वर्कशॉप से दूसरा नया इंजन पठानकोट लोको पहुंच गया है। परेल वर्कशॉप इंजीनियरिंग ब्रांच को इसका ट्रायल लेने के लिए लिख दिया है। मार्च के पहले सप्ताह टीम के पठानकोट आने की उम्मीद है। टीम के नेतृत्व में ट्रायल लिया जाएगा जिसके बाद इंजन को नैरोगेज ट्रेनों के साथ जोड़ कर हिमाचल प्रदेश की हसीन वादियों में भेजा जाएगा।

Written By
The Punjab Wire