सुप्रीम कोर्ट ने बहबल कलाँ और बरगाड़ी मामलों की जांच सम्बन्धी सी.बी.आई. की पटीशन ख़ारिज की -मुख्यमंत्री ने सदन को दी जानकारी
राज्य सरकार द्वारा विस्तृत जांच करवाने का भरोसा
चंडीगढ़, 20 फरवरी:पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने आज कहा कि बहबल कलाँ और बरगाड़ी मामलों की जांच की इजाज़त मांगने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसी (सी.बी.आई.) द्वारा दायर पटीशन को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द कर देने से राज्य सरकार के पक्ष की पुष्टि हुई है।
मुख्यमंत्री ने आज सदन में भरोसा दिया कि विशेष जांच टीम (एस.आई.टी.) बहबल कलाँ और बरगाड़ी मामलों को कानूनी निष्कर्ष पर लेकर जाएगी।सुुप्रीम कोर्ट द्वारा आज प्रात:काल बेअदबी मामलों और इसके बाद घटे पुलिस गोलीबारी के मामलों की जांच राज्य को जारी रखने की इजाज़त देने से राज्य सरकार की बड़ी कानूनी जीत हुई है। इन मामलों की जांच पिछली अकाली-भाजपा सरकार के समय सी.बी.आई. को सौंपी गई थी।
इन मामलों में जांच को पूरा करने में सी.बी.आई. के नाकाम रहने के कारण कैप्टन अमरिन्दर सिंह सरकार ने इससे पहले सदन में ऐलान किया था कि यह केस सी.बी.आई. के पास से वापस लिए जाएंगे और इनकी जांच राज्य सरकार करवाएगी।एडवोकेट जनरल अतुल नन्दा के कार्यालय से राज्य के लिए करण भारिओखे वकील थे।सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान जस्टिस आर. नरीमन और जस्टिस रविन्द्र भट्ट के डिवीजऩ बैंच ने सी.बी.आई. केस को ख़ारिज करते हुए एजेंसी के वकील अमन लेखी की दलीलों को इस आधार पर रद्द कर दिया कि एजेंसी के पास एस.एल.पी. दायर करने के 90 दिन होने के बावजूद उसने यह पटीशन दायर करने में 257 दिन लगा दिए।
जज ने एडवोकेट लेखी की इस दलील को भी रद्द कर दिया कि सी.बी.आई. की टीम को कानूनी मुद्दे पर मुश्किल आई क्योंकि यह मिसाल बनेगी, न कि इस जांच को हस्तांतरित किये जाने पर। सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही संबंधी विस्तार में जानकारी देते हुए अतुल नन्दा ने बताया कि जज ने कानून के सवाल को खुला रखते हुए देरी के आधार पर एस.एल.पी. को बखऱ्ास्त करने के हुक्म दिए हैं। संयोगवश, कानून का सवाल, क्या आम धाराएं एक्ट की धारा 21, दिल्ली स्पैशल पुलिस स्थापना एक्ट की धारा पर लागू होती है, को पहले काज़ी लन्दम दोरजी और आर. चन्द्रशेखर के मामलों में भी खुला छोड़ दिया गया था।
नन्दा ने कहा कि सी.बी.आई. से राज्य पुलिस को जांच सौंपने के कार्य को अंतिम रूप मिल गया है जिस कारण अब एस.टी.आई. को जांच करने के रास्ते में अब कोई अन्य रुकावट नहीं आएगी।दोरजी और चन्द्रशेखर के फ़ैसले के अनुसार एक बार जांच सी.बी.आई. को सौंपने के बाद इसको वापस नहीं लिया जा सकता था। उन्होंने मामले का फ़ैसला उनके अपने तथ्यों पर किया गया है परन्तु सवाल यह पैदा होता है कि क्या राज्य की विधानसभा के पास सी.बी.आई. से जांच वापस लेने की शक्ति है, संबंधी आम धाराओं के एक्ट को खुला छोड़ दिया गया था।अभियोजन पक्ष के केस में बेअदबी के मामले में पंजाब पुलिस द्वारा शुरुआत में तीन एफ.आई.आरज़ दर्ज की गई थीं परन्तु बाद में जांच का जि़म्मा पंजाब से लेकर सी.बी.आई. को सौंप दिया गया था जहाँ दोबारा आर.सी. नंबर 13 (एस)/2015 /एससी-3/एन.डी. तारीख़ 13 नवंबर 2015, आर.सी. नंबर 14 (एस)/2015 /एससी-3/एन.डी. तारीख़ 13 नवंबर 2015 और आर.सी. नंबर 15 (एस)/2015 /एस सी-3/एन.डी. तारीख़ 13 नवंबर 2015 केस दर्ज किये गए।
यह पेश किया गया था कि सी.बी.आई. द्वारा उक्त तीन मामलों में क्लोजऱ रिपोर्ट पेश की गई, इसलिए पंजाब सरकार को अधिकृत प्रयोग के लिए इससे जुड़े दस्तावेज़ों की कापियों समेत सांझी रिपोर्ट की प्रमाणित कापी की ज़रूरत थी।अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किया गया कि सिफऱ् जांच तबदील की गई है और सी.बी.आई., पंजाब सरकार को समय-समय पर जांच के पड़ावों संबंधी जानकारी देती रहेगी।
आगे अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि पंजाब विधानसभा द्वारा जांच को सी.बी.आई. से वापस लेने के लिए प्रस्ताव पास किया गया। इसके अनुसार पंजाब सरकार द्वारा मामले की जांच सी.बी.आई. को देने की सहमति वापस लेने का नोटिफिकेशन 6 सितम्बर, 2018 को जारी किया गया।उक्त प्रस्ताव और नोटिफिकेशन को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जिस पर 2019 (2) आर.सी.आर. आपराधिक, पन्ना 165 पर फ़ैसला सुनाते हुए नोटिफिकेशन को कायम रखा था। राज्य सरकार ने दलील दी थी कि सी.बी.आई. ने सहमति वापस लेने के बाद एस.एल.पी. दायर नहीं की थी और राज्य को मामलों की जांच करने का पूरा अधिकार है।