सुखजिन्दर सिंह रंधावा ने अकाली सरकार के बिजली समझौतों के कारण राज्य के साथ हुए अन्याय को किया उजागर
कैबिनेट मंत्री और 9 विधायकों ने पिछली सरकार के समय हुए बिजली समझौतों का ‘ब्लैक पेपर’ जारी किया
25 हज़ार करोड़ के निवेश वाले प्राईवेट थर्मल प्लांटों को कुल 65 हज़ार करोड़ के करीब अदायगी करनी पड़ेगी
चंडीगढ़, 21 जनवरी। पंजाब के सहकारिता और जेल मंत्री स. सुखजिन्दर सिंह रंधावा और 9 विधायकों ने अकाली दल की पिछली सरकार के समय हुए बिजली समझौतों के कारण राज्य के लोगों के साथ हुए अन्याय उजागर किये। अकाली दल द्वारा राज्य के राज्यपाल को दिए मैमोरेंडम को झूठ का पुलिंदा बताते हुए उन्होंने खुलासा किया कि 2006 में कैप्टन अमरिन्दर सिंह की सरकार के समय बनाई गई बिजली नीति में पिछली अकाली सरकार ने निजी मुनाफों के ख़ातिर हेरा-फेरी करते हुए 25 साल के लिए ऐसी नयी नीति बना दी कि आज राज्य के लोग मँहगी बिजली का संताप भोग रहे हैं।
उन्होंने बिजली के मुद्दे पर पिछली सरकार में 10 सालों के दौरान बिजली विभाग संभालने वाले पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल को किसी भी प्लेटफॉर्म पर खुली बहस का न्योता दिया।उन्होंने कहा कि पिछली सरकार के कुकर्मोंं की सज़ा अब उनकी सरकार को भूगतनी पड़ रही है और अपनी की गई गलतियों को ढकने के लिए आज अकाली नेता कोरा झूठ बोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार के समय प्राईवेट थर्मल प्लांट पहले से ही स्थापित होने शुरू हो गए और समझौतों की नीति बाद में बनाई गई।
इस सम्बन्धी आज स. रंधावा और विधायकों दर्शन सिंह बराड़, परमिन्दर सिंह पिंकी, गुरकीरत सिंह कोटली, दर्शन लाल मंगूपुर, कुलबीर सिंह ज़ीरा, कुलदीप सिंह वैद, परगट सिंह, सुखपाल सिंह भुल्लर और दविन्दर सिंह घुबाया ने ‘ब्लैक पेपर’ भी जारी किया।स. रंधावा ने सबूतों समेत खुलासे करते हुए कहा कि साल 2006 में कांग्रेस सरकार की तरफ से बनाई बिजली नीति के अनुसार राज्य में अधिक से अधिक 2000 मेगावॉट सामथ्र्य के बिजली उत्पादन के प्रोजैक्ट लगाए जा सकते हैं और एक प्रोजैक्ट 1000 मेगावॉट से अधिक के सामथ्र्य वाला नहीं लग सकता। उस समय 540 मेगावॉट सामथ्र्य वाला गोइन्दवाल पावर प्लांट का एम.ओ.यू. सहीबद्ध किया और दूसरे फ़ैसले के अनुसार कोयला भी झारखंड के पछवाड़ा स्थित अपनी कोयले की खान से खरीदा जाएगा।
उन्होंने कहा कि 2007 के बाद अकाली दल की सरकार ने 4000 मेगावॉट के समझौते सहीबद्ध कर लिए। राज्य को दूसरी बड़ी मार कोयला अपनी खान की बजाय कोल इंडिया से खरीदने के फ़ैसले से पड़ी। स. रंधावा ने कहा कि अकाली नेता बिजली समझौतों के पीछे यू.पी.ए. सरकार के दिशा-निर्देशों पर दोष लगा रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि यू.पी.ए. सरकार की तरफ से जारी दिशा-निर्देशों के अंतर्गत गुजरात की तरफ से बिजली नीति बनाई गई और अकाली सरकार ने गुजरात की नीति को ही अपनाया। उन्होंने कहा कि गुजरात की नीति में धारा 9 और 11 के अंतर्गत राज्य को फ़ायदा पहुँचाने वाली मदों को पंजाब ने निजी फायदों के लिए बाहर रख दिया।
उन्होंने कहा कि धारा 9 के अनुसार बिजली खरीदने से मना किया जा सकता था परन्तु पंजाब ने यह मद शामिल नहीं की। इसी तरह धारा 11 ही ख़त्म कर दी गई जिसके अंतर्गत 100 प्रतिशत बिजली खरीदने की जि़म्मेदारी पंजाब ने अपने ऊपर ले ली और न खरीदने की सूरत में फिक्सड चार्ज देने होंगे। उन्होंने कहा कि मार्च 2017 तक अकाली सरकार ने फिक्सड चार्ज के रूप में 6553 करोड़ रुपए पावर प्लांटों को दिए जिसके बदले वह पिछली सरकार से स्पष्टीकरण मांगते हैं।
उन्होंने कहा कि 25 सालों के लिए हुए समझौतों के बदले 65 हज़ार करोड़ फिक्सड चार्ज देने होंगे जबकि पावर प्लांटों पर कुल 25 हज़ार करोड़ रुपए का निवेश हुआ है।कैबिनेट मंत्री स. रंधावा ने कहा कि पूर्व उप मुख्यमंत्री निजी पावर प्लांट से 2.80 रुपए प्रति यूनिट बिजली खरीदने की बात कर रहे हैं जबकि अकाली दल अपनी सरकार की प्राप्तियों में पंजाब के लोगों को 6.39 रुपए प्रति यूनिट देने की बात करती है। इसी तरह 3.60 रुपए प्रति यूनिट फर्क संबंधी भी अकाली नेता जवाब दें। उन्होंने आगे कहा कि 2014 से सितम्बर 2016 तक अकाली सरकार के समय पर बिजली की पूरी माँग के दौरान पंजाब ने बाहर से 13,822 करोड़ रुपए की बिजली खऱीदी जो कि 3.34 रुपए से 3.41 रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से पड़ती थी।
उन्होंने कहा कि अपने राज्य के प्राईवेट पावर प्लांटों से 5.18 रुपए से 6 रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली खऱीदी गई। इस तरह सुखबीर बादल स्पष्ट करे कि उनको प्राईवेट पावर प्लांट बनाने का क्या ह्यफ़ायदा हुआ जबकि बाहर के राज्यों से सस्ती बिजली खऱीदी जा रही थी। उन्होंने कहा कि फ़ाल्तू बिजली वाला राज्य बनाने का राग अलापने वाले अकाली नेता बताएं कि उन्होंने ‘सरप्लस नीति’ क्यों नहीं बनाई। स. रंधावा ने आगे कहा कि पिछली सरकार ने प्राईवेट प्लांटों से ल्यूकीडेटिड डैमेज चार्जिज़ (एल.डी.सी.) के 1231 करोड़ रुपए भी नहीं वसूले जबकि बिजली समझौतों के अंतर्गत यह वसूले जाने बनते थे।