शहर में रैली निकाल कर केंद्र व पंजाब सरकार को कोसा
गुरदासपुर, 1 सितंबर । अपनी मांगों को लेकर मनरेगा वर्कर्स यूनियन ने डीसी कार्यालय के समक्ष धरना दिया। धरने के बाद डीसी गुरदासपुर के जरिए देश के प्रधानमंत्री और पंजाब के मुख्यमंत्री के नाम पर मांग पत्र भेजा। इससे पहले यूनियन ने शहर में रोष रैली निकाली। जिसकी अध्यक्षता सुनील ने की।
वक्ताओं ने कहा कि मनरेगा 2005 के अनुसार पंजाब में मनरेगा की दिहाड़ी 269 रुपए तय की गई है, जबकि पड़ोसी राज्य हरियाणा की मनरेगा की दिहाड़ी 315 रुपए तय है। पंजाब व हरियाणा में एक ही महंगाई है, मगर केंद्र सरकार ने पंजाब के मनरेगा श्रमिकों की कम दिहाड़ी तय करके पंजाब के साथ सौतेला व्यावहार किया है। पंजाब सरकार ने कभी भी मनरेगा श्रमिकों के हक में केंद्र सरकार समक्ष आवाज नहीं उठाई। उन्होंने कहा कि पंजाब में मनरेगा कर्मचारी पिछले कई माह से हड़ताल पर बैठे, जिससे किसी भी अधिकारी ने मनरेगा श्रमिकों की काम के मांग के आवेदन नहीं लिए और न ही पंजाब के किसी भी गांव में मनरेगा के अदीन काम मिला है। जिससे कोरोना महामारी के कारण बेरोजगार हुए परिवार भुखमी का शिकार हो रहे है। पेंडू विकास व पंचायत विभाग की गलत नीतियों के कारण एक भी मजदूर को सप्ताहिक छुट्टी के पैसे नहीं मिले।
उन्होंने कहा कि पिछले समय से बड़ी संख्या में पंजाब के भट्ठो की जांच राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने केसों में कार्रवाई की गई। अधिकतर केसों में यह पाया गया कि भट्ठा मालिक कोई रिकार्ड नहीं रखते। ऐसे मामलों में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने इन भट्ठों से संबंधित मजदूरों को बंधुआ मजदूर घोषित किया है। श्रम विभाग के अधिकारियों द्वारा मजदूरों का पूरा रिकार्ड रखवाया जाए और वेतन भी चेक के जरिए या इलेक्ट्रोनिक तरीके से से दिए जाए। उन्होंने कहा कि न्यूनतम वेतन एक्ट 1948 के अनुसार हर पांच साल के बाद समीक्षा होनी अवश्यक है। जो कि पिछली बार 2012 में हुई थी और 2017 में दोबारा शौध करके मजदूरों की दिहाड़ी में बढ़ोत्तरी करना पंजाब सरकार की जिम्मेदारी थी। दुख से कहना पड़ रहा है कि पंजाब सरकार द्वारा अपना फर्ज नहीं निभाया गया। जिससे मजदूरों की आर्थिक पर भारी चोट पहुंची है। इस मौके पर कर्ण, आरिफ, विलीयम, थोमस मट्टू, सतनाम सिंह, जीता, संजीव कुमार, महरदीप, विक्की, सरबजीत सिंह, सुनीता, विशाल आदि उपस्थित थे।