कारगिल युद्ध के 22 वर्ष : कारगिल युद्ध की कहानी कैप्टन रघुनाथ की जुबानी
देश का गौरव व कारगिल युद्ध के नायक हैं कैप्टन विक्रम बत्तरा
मरणोपरांत परमवीर चक्र से हुए थे सम्मानित
लाख रुपए की नौकरी छोड़ सेना को दी प्राथमिकता
यह दिल मांगे मोर का जयघोष देश भर में रहा चर्चित
गुरदासपुर, 24 जुलाई (मनन सैनी)। कारगिल युद्ध भारतीय सेना की अद्भुत शौर्य गाथा को दर्शाता है। इस युद्ध में सैंकड़ो वीर जवानों ने अपनी शहादतें देकर राष्ट्र की एकता व अखंडता को जहां बरकरार रखा, वहीं अनेक वीर सैनिकों ने दुश्मन को धूल चटाते हुए अपनी साथी सैनिकों व खुद को बचाते हुए बहादुरी की अदम्य मिसाल कायम की। कारगिल युद्ध में बहादुरी का परचम फहराने वाले एेसे ही एक वीर योद्धा है, गांव घरोटा निवासी वीरचक्र विजेता कैप्टन रघुनाथ सिंह। कारगिल युद्ध की स्मृतियां जहन में आते ही उनकी आंखे अंगारे बरसाने लगती हैं। इसी जोश व जज्बे से लवरेज उस युद्ध के अनुभव सांझे करते हुए कैप्टन रघुनाथ सिंह ने बताया कि कारगिल युद्ध में कई जांबाज सैनिकों ने अपनी शहादतें देकर राष्ट्र के गौरव को बढ़ाया, मगर कैप्टन विक्रम बत्तरा को अगर कारगिल युद्ध का नायक कहा जाये तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी। उन्होंने कहा कि कैप्टन बत्तरा की जांबाजी की कहानी सुन हर देशवासी का सिर फख्र से ऊंचा हो उठता है, जिन्होंने लाख रुपए की सेलरी वाली नौकरी को ठोकर मारते हुए भारतीय सेना को चुना। 9 सितंबर 1974 को पालमपुर में जन्मे कैप्टन बत्तरा ने जुलाई 1996 को सी.डी.एस के जरिये भारतीय सेना अकादमी देहरादून में प्रवेश किया। 1999 को पाकिस्तान ने भारत पर जब कारगिल युद्ध थोपा तो 13 जैक राईफल्स युनिट के कैप्टन विक्रम बत्तरा को सोपोर से कारगिल भेज दिया गया।
बर्फीली चोटी पर तिरंगा फहरा यह दिल मांगे मोरज् का जयघोष देश भर में चर्चित रहा
कैप्टन रघुनाथ सिंह ने बताया कि महज 18 महीने की नौकरी के बाद ही कैप्टन विक्रम बत्तरा को कारगिल जाना पड़ा। वह खुद भी उस वक्त बतौर सूबेदार उनके साथ थे। 22 जून 1999 को द्रास सेक्टर की प्वाईंट 5140 चोटी जिस पर दुश्मन ने कब्जा जमाया हुआ था। कैप्टन बत्तरा ने अद्भुत वीरता का परिचय देते हुए 10 पाक सैनिकों को मारकर उस चोटी पर तिरंगा फहराया। चोटी फतेह करने की जानकारी कैप्टन बत्तरा ने अपने कमांडिंग अफसर को फोन पर देते हुए कहा कि सर अब मुझे दूसरा टास्क दें, क्योंकि यह दिल मांगे मोर। कैप्टन बत्तरा का यह दिल मांगे मोर का जयघोष सारे देश में चर्चित रहा।
साथी सैनिक की जान बचाते हुए कैप्टन बत्तरा ने पिया था शहादत का जाम
कैप्टन रघुनाथ सिंह ने बताया कि 7 जुलाई 1999 को उन्हें और कैप्टन विक्रम बत्तरा को मास्को घाटी की प्वाईंट 4875 की चोटी को दुश्मन से आजाद करवाने का टास्क मिला, जिसे उन्होंने बहादुरी से लड़ते हुए वह चोटी भी दुश्मन से आजाद करवा ली। मिशन लगभग पूरा हो चुका था, इसी बीच कैप्टन विक्रम बत्तरा की नजर अपने जूनियर साथी लेफ्टीनेंट नवीन पर पड़ी,जिसका पांव दुश्मन द्वारा फेंके ग्रनेड से बुरी तरह जख्मी हो गया था। कैप्टन बत्तरा अपने साथी को कंधे पर उठा सुरक्षित जगह पर लेकर जा रहे थे तभी पाक सैनिकों ने नजदीक से उन पर हमला बोल दिया तथा एक गोली उनके सीने को भेदते हुए निकल गई। वह खून से लथपथ थे, मगर उनका हौंसला नहीं टूटा तथा साथी को सुरक्षित जगह पर पहुंचाने के बाद पाक सेना के पांच सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और खुद भारत माता का यह लाल राष्ट्र की बलिबेदी पर कुर्बान हो गया। इनकी बहादुरी को देखते हुए भारत सरकार द्वारा इन्हें मरणोपरांत वीरता के सर्वोच्च पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
कैप्टन बत्तरा की शहादत के बाद सूबेदार रघुनाथ ने संभाली युद्ध की कमान
कैप्टन बत्तरा की शहादत भी उनका मनोबल नहीं तोड़ पाई। इस लिए उनकी शहादत का बदला लेने के लिए सूबेदार रघुनाथ व उनके साथियों ने रेंगते हुए दुश्मन के काफी करीब जाकर हमला बोल दिया तथा पाक सेना के ग्रुप कमांडर इमत्याज खां समेत 12 पाक सैनिकों को मौत के घाट उतार कर उस बर्फीली चोटी पर भी तिरंगा फहरा कैप्टन बत्तरा की शहादत का बदला ले लिया। उनके इस बहादुरी के लिए उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपित ने वीरचक्र से सम्मानित किया।
कैप्टन बत्तरा की शहादत व कैप्टन रघुनाथ सिंह का शौर्य युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत-कुंवर विक्की
शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद के महासचिव कुंवर रविंदर विक्की ने कहा कि कारगिल युद्ध भारतीय सेना अद्भुत शौर्य गाथा को दर्शाता है,जिन कठिन परिस्थितियों में भारतीय सेना ने यह युद्ध लड़ा, उसकी मिसाल विश्व में अन्य कहीं नहीं मिलती तथा कैप्टन बत्तरा की शहादत व कैप्टन रघुनाथ सिंह की शूरवीरता से युवा पीढ़ी हमेशा प्रेरणा लेती रहेगी। उन्होंने कहा कि कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले देश के 528 सैनिकों की शहादत का दुख तो है, मगर भारतीय सेना ने इस युद्ध में विजय पताका फहराते हुए पूरे विश्व में अपनी ताकत का लोहा मनवाया। अपने जांबाज सैनिकों पर देश को हमेशा गर्व रहेगा।
कारगिल युद्ध में 13 जैक राईफल युनिट को मिले हैं सबसे ज्यादा वीरता पदक
कैप्टन रघुनाथ सिंह ने बताया कि भारतीय सेना के इतिहास में 13 जैक राईफल युनिट इकलौती ऐसी युनिट है, जिसे कारगिल के एकही आपरेशन में दो परमवीर चक्र, 8 वीर चक्र, 13 सेना मेडल व 30 सी.ओ.एस वीरता पदक मिले हैं।