खास बातें- Oxford की ग्रीनहाल ने कहा- परिभाषा बदलें डब्ल्यूएचओ (WHO)
ब्रिटेन, अमेरिका व कनाडा के छह विशेषज्ञों ने किया रिव्यू
Lancet Report on COVID 19: कोरोना वायरस (Coronavirus) के मामले दुनियाभर में एक बार फिर रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं और समूचा विश्व इसे लेकर भयभीत है। . इस बीच इसे लेकर एक रिपोर्ट भी सामने आई है, जिसने SARS-CoV-2 को लेकर जो पुराना नजरिया है, उसके उलट दावा किया है. विश्व की प्रमुख स्वस्थ पत्रिका द लैंसेट में प्रकाशित एक लेख बताया गया है कि कोरोना वायरस हवा में तेजी से फैलता है। इस समीक्षा रिपोर्ट की मुख्य लेखिका आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की त्रिश ग्रीनहाल है। उनका दावा है कि वक्त आ गया है जब विश्व स्वास्थ्य संगठन को वायरस के संक्रमण की परिभाषा बदलने की जरुरत है। अब मास्क, सुरक्षित शरीरक दूसरी जैसे कोरना से बचाव के उपाय बौने हो गए है। अपनी बात साबित करने के लिए इन्होंने 10 कारण बताए हैं.
पहला कारण-
विशेषज्ञों ने कहा, ‘सुपरस्प्रेडिंग इवेंट्स में पर्याप्त सार्स-सीओवी-2 फैलता है, वास्तव में इस तरह के इवेंट महामारी के शुरुआती चालक हो सकते हैं.’ मानव व्यवहार और बातचीत, कमरे के आकार, वेंटिलेशन और अन्य कारकों के विस्तृत अवलोकन से पता चलता है कि ये एक हवा में फैलने वाली बीमारी है. और इसे ड्रॉपलेस्ट या फिर फोमाइट से पर्याप्त रूप से नहीं समझा जा सकता है.
दूसरा कारण-
क्वारंटाइन के लिए इस्तेमाल होने वाले कमरों में लोग एक दूसरे के सामने भी नहीं आते हैं लेकिन फिर भी वहां सार्स-सीओवी-2 फैल रहा है.
तीसरा कारण-
विशेषज्ञों ने कहा है कि जो लोग छींक या फिर खांस नहीं रहे हैं, वो भी कोविड के कुल मामलों में 33 फीसदी से 59 फीसदी तक वायरस के एसिम्प्टमैटिक या प्रीएसिम्प्टमैटिक ट्रांसमिशन के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं. इससे भी साबित होता है कि कोरोना हवा में फैलने वाली बीमारी है.
चौथा कारण-
कोरोना वायरस चार दीवारी के बाहर कम और इनडोर यानी चार दीवारी के अंदर अधिक तेजी से फैलता है. ये इनडोर वेंटिलेशन से कम भी हो जाता है.
पांचवां कारण-
पेपर में विशेषज्ञों ने कहा है कि नोसोकॉमियल इन्फेक्शन (जो अस्पताल में पैदा होते हैं) वह उन स्थानों पर भी पाया गया है, जहां स्वस्थकर्मियों ने ड्रॉपलेट्स से बचाव के लिए पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट) किट पहने हैं. क्योंकि पीपीई किट को ड्रॉपलेट्स से बचने के लिए डिजाइन किया गया था ना कि एरोसोल एक्सपजोर (हवा के जरिए फैलने वाला संक्रमण) के लिए.
छठा कारण-
विशेषज्ञों ने कहा है कि सार्स-सीओवी-2 हवा में भी पाया गया है. लैब में किए गए एक्सपेरिमेंट्स में वायरस तीन घंटे तक हवा में रहा है. विशेषज्ञों ने उस दावे को खारिज कर दिया है कि संक्रमण हवा में कम फैला है. इसके लिए खसरा और टीबी की दलील दी गई थी, जो मुख्य रूप से वायु जनित रोग थे, लेकिन ये कमरे की हवा में नहीं फैले.
सातवां कारण-
विशेषज्ञों ने कहा है कि सार्व-सीओवी-2 कोविड-19 मरीज वाले अस्पतालों के एयर फिल्टर और बिल्डिंग डक्ट्स में भी पाया गया है. इन स्थानों पर केवल एयरोसोल के जरिए ही पहुंचा जा सकता है.
आठवां कारण-
विशेषज्ञों ने पिंजड़ों में बंद उन जानवरों का हवाला दिया, जो कोरोना से संक्रमित हुए हैं. जिससे पता चलता है कि सार्स-सीओवी-2 का संक्रमण हवा के जरिए भी फैलता है.
नौवां कारण-
विशेषज्ञों ने एक और तर्क देते हुए कहा कि हमारी नजर में ऐसा कोई भी अध्ययन नहीं है जो ये साबित करने के लिए मजबूत और तर्कयुक्त सबूत दे सके कि सार्स-सीओवी-2 हवा में फैलने वाली बीमारी नहीं है.
दसवां कारण-
अपने अंतिम तर्क में विशेषज्ञों ने कहा है कि ऐसे साक्ष्य बेहद कम हैं, जो संक्रमण फैलने के अन्य मार्गों जैसे रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट्स (मुंह से निकलने वाली बूंदें) या फिर फोमाइट का समर्थन कर सकें.
विशेषज्ञों के इन दावों से साबित होता है कि दुनियाभर में वायरस से बचाव के लिए अपनाई जा रही रणनीति में बदलाव करने की जरूरत है. लोगों के लिए ना केवल बाहर बल्कि घर के अंदर या यहां तक कि हर समय मास्क पहनना जरूरी है. विशेषज्ञों ने ये भी कहा है कि अगर संक्रमित शख्स सांस छोड़ता है, चिल्लाता है, गाना गाता है, छींकता है या फिर खांसता है, तो हवा में सांस लेने वाला शख्स भी संक्रमित हो सकता है. इससे पता चलता है कि दुनिया में कोरोना वयरस महामारी से बचाव के लिए जो तरीका अपनाया जा रहा है, उसमें बदलाव की जरूरत है.