ऐसे कदम से भारत के बासमती निर्यातकों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा और पाकिस्तान को फायदा होगा
चंडीगढ़, 5 अगस्त: पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर पंजाब और अन्य राज्यों के बड़े हित में मध्यप्रदेश की बासमती को भौगोलिक संकेतक दर्जा देने (जीयोग्राफीकल इंडीकेशन टैगिंग) की इजाजत न देने के लिए उनके निजी दखल की माँग की है।
पंजाब के अलावा हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू कश्मीर के कुछ जिलों को पहले ही बासमती के लिए जी.आई. टैगिंग मिला हुआ है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि ऑल इंडिया राइस ऐक्सपोर्टर्स एसोसिएशन द्वारा मध्यप्रदेश के किसी भी दावे को विचारने का जोरदार विरोध करते हुए ऐसा करने से भारत की निर्यात क्षमता पर पडऩे वाले बुरे प्रभाव बारे चिंताएं जाहिर की जा रही हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत, हर साल 33,000 करोड़ रुुपए का बासमती निर्यात करता है परन्तु भारतीय बासमती की रजिस्ट्रेशन में किसी तरह की छेड़छाड़ से बासमती की विशेषताएं और गुणवत्ता पैमाने के रूप में अंतरराष्ट्रीय मार्केट में पाकिस्तान को फायदा हो सकता है।
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री ने जी.आई. टैगिंग के आर्थिक और सामाजिक महत्ता से जुड़े मुद्दे की तरफ उनका ध्यान दिलाते हुए कहा कि मध्यप्रदेश की बासमती को जी.आई. टैगिंग देने से राज्य के कृषि क्षेत्र और भारत के बासमती निर्यातकों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। मध्यप्रदेश ने बासमती के लिए जी.आई. टैगिंग के लिए अपने 13 जिलों को शामिल करने की माँग की है।
श्री मोदी को इस मामले के मौजूदा स्वरूप में किसी तरह की छेड़छाड़ न करने देने के लिए सम्बन्धित अथोरिटी को आदेश देने की अपील करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि किसानों और भारत के बासमती निर्यातकों के हितों की सुरक्षा के लिए ऐसा किया जाना बहुत जरूरी है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जीओग्राफीकल इंडीकेशंस ऑफ गुड्डज (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) ऐक्ट 1999 के मुताबिक जी.आई. टैगिंग कृषि वस्तुओं के लिए जारी किया जा सकता है जो मूल तौर पर एक मुल्क के प्रदेश या क्षेत्र या राज्य के क्षेत्र से सम्बन्धित हो जहाँ ऐसी वस्तुओं की गुणवत्ता, प्रतिष्ठा या अन्य विशेषताएं इसके भौतिक उत्पत्ति की विशेषता को दर्शाती हो। बासमती के लिए जी.आई. टैगिंग बासमती के परंपरागत तौर पर पैदावार वाले क्षेत्रों को विशेष महक, गुणवत्ता और अनाज के स्वाद पर दिया गया है जो इंडो-गंगेटिक मैदानी इलाकों के निचले क्षेत्रों में मूल तौर पर पाई जाती है और इस इलाके की बासमती की विश्व भर में अलग पहचान है।
कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि मध्यप्रदेश बासमती की पैदावार के लिए विशेष जोन में नहीं आता। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि मध्यप्रदेश को बासमती की पैदावार वाले मूल क्षेत्र में शामिल नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि बासमती की टैगिंग के लिए मध्यप्रदेश के किसी भी इलाके को शामिल करने का कदम जी.आई. टैगिंग की प्रक्रिया और कानूनों का सीधा उल्लंघन होगा और जी.आई. टैगिंग इलाकों के उल्लंघन की कोई भी कोशिश न सिर्फ भारत के विशेष इलाकों में सुगंधित बासमती पैदावार के दर्जे को चोट पहुंचाएगी, बल्कि भारतीय संदर्भ में जी.आई. टैगिंग के मंतव्य को भी नुकसान पहुंचाएगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश ने इससे पहले भी साल 2017-18 में बासमती की पैदावार के लिए जी.आई. टैगिंग के लिए कोशिश की थी। हालाँकि, जीओग्राफीकल इंडीकेशन ऑफ गुड्डज (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) ऐक्ट 1999 के अंतर्गत गठित जीओग्राफीकल इंडीकेशन के रजिस्ट्रार ने मामले की जांच करने के उपरांत मध्यप्रदेश की माँग रद्द कर दी थी। इस सम्बन्ध में भारत सरकार के ‘दी इंटलेक्चुयल प्रॉपर्टी ऐपेलेट बोर्ड’ ने भी मध्यप्रदेश के दावे को खारिज कर दिया था। बाद में मध्यप्रदेश ने इन फैसलों को मद्रास हाई कोर्ट में चुनौती दी थी परन्तु कोई राहत नहीं मिली।
कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि बासमती के लिए जी.आई. टैगिंग बारे मध्यप्रदेश के दावे को जाँचने के लिए भारत सरकार ने प्रसिद्ध कृषि विज्ञानियों की एक समिति का गठन भी किया था जिसने लम्बी-चौड़ी चर्चा के बाद राज्य के दावे को रद्द कर दिया था।