न्यूनतम समर्थन मूल्य और फसलीय खरीद व्यवस्था को खत्म करने वाले हर कदम के विरुद्ध चेतावनी, राष्ट्रीय खाद्यान सुरक्षा खतरे में पड़ेगी
चंडीगढ़, 5 जून – पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने केंद्र सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र के लिए घोषित किए गए तथाकथित सुधारों को मुल्क के संघीय ढांचे को चोट पहुंचाने और अस्थिर करने वाला एक अन्य प्रयास कहते हुए रद्द किया। मुख्यमंत्री ने चेतावनी दी कि इससे फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य और खरीद व्यवस्था के खात्मे का आधार बंधेगा और राज्य के किसानों में बेचैनी पैदा होगी ।
भारत के संविधान के अंतर्गत राज्यों के अधिकारों को दबाने वाले केंद्र के इस फैसले का सख्त विरोध करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब, भारत सरकार के मुल्क के संघीय ढांचे को कमजोर करने वाले हर उस कदम के खिलाफ लड़ेगा जिससे राज्य के मजबूत कृषि उत्पादन और मार्केटिंग प्रणाली में सीधा या नुकसानदायक दखल दिया जा रहा हो।
उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसा फैसला मुल्क की अन्न सुरक्षा, जिसको बहाल रखने के लिए हरित क्रांति से ही पंजाब के निस्वार्थ किसानों ने कड़ी मेहनत की है, को बुरी तरह और नकारात्मक ढंग से प्रभावित करेगा।
कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि भारत का संघीय ढांचा केंद्र और राज्यों की जिम्मेदारियों और भूमिका को स्पष्ट रूप में निर्धारित करता है। उन्होंने कहा कि संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत कृषि राज्य का विषय है और केंद्र सरकार के पास ऐसा कानून बनाने के लिए कोई शक्तियां नहीं हैं जिससे कृषि उत्पादन, मार्केटिंग और प्रोसेसिंग की गतिशीलता से निपटा जा सके। उन्होंने कहा कि यह मसले राज्यों के हैं जिनको राज्य निजी स्तर पर बेहतरी से निपट सकते हैं। उन्होंने कहा कि, ‘‘कृषि पैदावर, व्यापार और वाणिज्य ( संवर्धन और सुविधा) ऑर्डीनैंस-2020 केंद्र सरकार के स्तर पर उच्च दर्जे का दुर्भावनापूर्ण फैसला है’’।
इस तथ्य पर जोर देते हुए कि यह फैसला पंजाब को नुक्सान पहुंचाएगा, मुख्यमंत्री ने वीडियो प्रैस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि केंद्र के अचानक फैसले लेने और राज्यों का पक्ष जाने बगैर इनको राज्यों पर थोपने की आदत राज्य के संघीय ढांचे के नियमों का उल्लंघन है।
अपने बयान में मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि कोविड महामारी के संकट के दौरान केंद्र सरकार के ऐसे कदम आर्थिक, सामाजिक, कानून और व्यवस्था के लिए गंभीर नतीजे पैदा कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इससे किसानों का कोई लाभ नहीं और इस कानूनी बदलाव से किसानों का व्यापारियों के हाथों नुक्सान होगा। उन्होंने आगे कहा कि झगड़ों के निपटारे के लिए कोई व्यवस्था नहीं बनाई गई और न ही राज्य सरकारों से इस सम्बन्धी कोई विचार-विमर्श किया गया है जिनको केंद्र के जल्दबाजी में उठाए इस कदम के नतीजे भुगतने के लिए छोड़ दिया गया है।
इस कानून को किसान भाईचारे, जिनके हितों को एन.डी.ए. के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने लगातार अनदेखा किया है, से एक भद्दा मजाक करार देते हुए मुख्यमंत्री ने कृषि के लिए अति आवश्यक सुधारों के युग की शुरुआत करने से कोसों दूरी वाली इन घोषणाओं को इस क्षेत्र को एकजुट रखने वाली प्रक्रियाओं और व्यवस्थाओं पर गहरी चोट मारने वाली स्पष्ट योजना कहा है।
पंजाब में कृषि की उपज के लिए प्रभावशाली मंडीकरण प्रणाली का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह व्यवस्था राज्य के हक में खरा उतरी है और 60 सालों के लंबे समय तक इसने हर परीक्षा की घड़ी को पार किया है। राज्य में उपज के खुले मंडीकरण और खेतों से मंडियों और गोदामों तक निर्विघ्न ढुलाई के लिए अति आधुनिक ढांचा विकसित है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि मौजूदा समय में कृषि उपज का सारा व्यापार नोटीफाईड मंडी /मंडी यार्डों में पंजाब कृषि उत्पाद मंडीकरण एक्ट, 1961 (ए.पी.एम.सी. एक्ट) के अंतर्गत लाइसेंसशुदा प्रणाली के जरिये किया जाता है जो किसानों को मंडियों में अपनी फसल लाने की आज्ञा देता है जहां फसल की खरीद / बिक्री पारदर्शी ढंग से की जाती है और किसानों को अदायगी यकीनी बनाई जाती है।
उन्होंने आगे कहा कि पंजाब सरकार ने पहले ही पंजाब के ए.पी.एम.सी एक्ट में जरूरी संशोधन कर दिए हैं जिससे खास उत्पादों के लिए निजी क्षेत्र में भी नियमित मंडियां स्थापित की जा सकें।
उन्होंने कहा कि वास्तव में पंजाब के मंडी यार्डों में सालाना 80000 करोड़ की खरीद / बिक्री होती है जो कृषि और कृषि उत्पादों पर निर्भर राज्य की 65 प्रतिशत आबादी के लिए सहायक बनते हैं।
इस बात पर जोर देते हुए कि पंजाब में पहले से ही अच्छी तरह स्थापित मार्किटिंग प्रणाली में दखल के लिए किसी केंद्रीय कानून की जरूरत नहीं है, कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने चेतावनी दी कि इस उपयुक्त ढंग से स्थापित प्रणाली में दखल वाला कोई भी कदम राज्य में बेचैनी पैदा कर सकता है क्योंकि इससे किसानों, खासकर छोटे और सीमांत किसानों को बुरी तरह चोट पहुंचेगी।
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