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छोटा घल्लूघारा स्मारक (काहनूवान) में शहीदों की याद में को करवाया जा रहा समागम, नौजवानों को इतिहास से जोड़ने का उद्देश्य। क्या है इतिहास पढ़ें.

छोटा घल्लूघारा स्मारक (काहनूवान) में शहीदों की याद में को करवाया जा रहा समागम, नौजवानों को इतिहास से जोड़ने का उद्देश्य। क्या है इतिहास पढ़ें.
  • PublishedJanuary 13, 2021

गुरदासपुर, 13 जनवरी (मनन सैनी)। नौजवान वर्ग को अपने इतिहास के साथ जोड़ने के उद्देश्य से जिला प्रशासन तथा संगतों के सहयोग से छोटा घल्लूघारा स्मारक काहनूवान में शहीदों की याद में समागम करवाए जा रहे है। जिसके चलते श्री आखंड़ साहिब के पाठ आरम्भ किए गए है। जिसमें 14 जनवरी को सुबह 10.30 बजे भोग अरदास होगी तथा लंगर का भी प्रंबंध किया गया है। जिसके उपरांत शहीदों की याद में प्रसिद्ध कविश्ररी तथा डाढ़ी जत्थे की ओर से लोगों को छोटा घल्लूघारा के इतिहास से भी अगवत करवाया जाएगा। यह जानकारी गुरदासपुर के डिप्टी कमिश्नर मोहम्मद इश्फाक ने देते हुए लोगों से अपील की कि वह इस समागम में पहुंच कर शहीदों को सजदा करें। इस मौके पर एडीसी (जनरल) तेंजिदर पाल सिंह संधू तथा एसडीएम अर्शदीप सिंह लुभाना भी मौजूद थे। 

छोटा घल्लूघारा का क्या है इतिहास 

यह यादगार लगभग 7000 से 11 हजार सिख समुदाय के पुरुषों, औरतों और बच्चों की अप्रैल से जून 1746 के दौरान की गई कुर्बानी को समर्पित है। इतनी ज्यादा गिनती में हुई शहादतों के कारण ही इस कत्लेआम को सिख इ​तिहास में छोटा घल्लूघारा कहा जाता है। 

उस समय लाहौर का मुगल गवर्नर याहियां खान था। लाहौर के दीवान लखपत राए का भाई जसपत राए जो अमनाबाद (पाकिस्तान) का​ सिपह सलार था, सिक्खों के एक समूह के साथ लाहौर के नजदीकी गांव रोड़ी बाबा नानक में मारा गया। इस घटना के उपरांत याहियां खान के हुक्मों के अनुसार लाहौर में सैंकड़ों सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया है। याहियां खान और लखपत राए की अगवाई तले एक बड़ी मुगल सैना सिखों की तरफ बड़ी, जिन्होने उस समय दरिया, रावी के उपर वाले हिस्से में शरण ली हुई थी। सिक्खों की अगवाई उस समय के प्रसिद्ध योधे जस्सा सिंह आहलूवालियां, सुक्खा सिंह माड़ी कंबों, रवी सिंह, चढ़त सिंह शुक्रचक्रिया, कपूर​ सिंह और दीप सिंह कर रहे थे। 

दरिया रावी और ब्यास के उपर क्षेत्रों में मुगलों और सिखों में कई दिनों तक निरंतर लड़ाई होती रही। गांव डल्लोंवाल के दो बहादुर भाई रावी दरिया को पार करते हुए अपनी जान गवां बैठे। कई दिनों की मुसीबतों और जद्दोजहद के बाद सिखों के भारी एकत्र ने ब्यास दरिया के बाई तरफ गुरदासपुर नगर से करीब 15 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में काहनूवान के छंब में शरण ले ली। परन्तु लाहौर से आई ह​जारों की गिनती में मुगल सेना ने सिखों को घेर लिया। 

कई दिनों तक घमासान युद्ध चलता रहा। तिब्ड़ी छावनी के क्षेत्र के गांव नंगल, कुराल , लमीन, चावा, कोटली सैनिया आदि में सिखों और मुगलों के बीच खूनी झडपें हुई। इन गांव के कुंओ को मुगलों की ओर से मानवी पिंजर तथा जानवरों की हड्डियों के साथ भर दिया गया, जोकि 1900 ई तक भी इन कूओं में से मिलती रही है। यहां से पकड़ कर सैंकड़ो सिख लाहौर ले जाए गए जहां उन्हे यातनाएं देकर शहीद गंज में शहीद कर दिया गया। इस घल्लूघारा के दौरान जालंधर से आई एक बहादुर सिख औरत बीबी सुंदरी, इन सिखों की सेवा करते हुए शहीदी प्राप्त कर गई। 

Written By
The Punjab Wire