उस शख्स के काम से हो रही तुलना जिसने दिलों पर राज, नही दिख रहा लोगो को खन्ना जैसा जूनून
मनन सैनी
आम चुनावों को अभी एक साल भी पूरा नही हुआ है, परन्तु गुरदासपुर की जनता का मोह अपने सांसद सनी देओल से अभी से भंग होना शुरु हो चुका है। अभिनेता से नेता बने सनी देओल की एक झलक पाने को लेकर बेकरार हो जाने वाली जनता का इस तरह अपने सांसद से उखड़ जाना चिंता का विषय है।
लोग सनी देओल का मुकाबला करने लगे है, उनकी तुलना करने लग पड़े है। तुलना भी उस शख्स से जिसने गुरदासपुर के लोगो के दिलों पर राज किया, जिसे पुलों के शंहशाह का नाम दिया गया। सनी देओल का मुकाबला उनकी जीत के तुरंत बाद से ही शुरु हो गया था। परन्तु अब यह मुकाबला किसी पार्टी या किसी नेता से नही बल्कि उन्ही की पार्टी से गुरदासपुर के पूर्व में संसद रहे चुके स्वर्गीय विनोद खन्ना से उनकी ओर से करवाए गए विकास कामों से है। विनोद खन्ना वह नाम है जिनके पहले गुरदासपुर में भाजपा का कोई आधार न के समान ही था। जिन्होने भाजपा के लिए गुरदासपुर में जमीन तैयार की। जिसका जिक्र खुद देश के प्रधानमंत्री अपने दौरो के दौरान गुरदासपुर में करके गए।
सनी देओल अभी तक शायद रील और रीयल लाइफ में अंदर नही कर पा रहे है। क्योंकि राजनिति में सनी देओल बिलकुल नए है तथा इसमें महारत हासिल करने में उन्हे समय भी लग सकता है। परन्तु क्या वह राजनिति सीखना चाहते भी है यह एक सबसे बड़ा सवाल है? अगर हां तो उन्हे खुद को इसके लिए अभी से तैयार करना शुरु करना पडेगा। हालाकि उनकी नैया तो वैसे स्टारडम ने ही पार लगा दी, परन्तु ऐसे ज्यादा देर तक राजनिति के मैदान में टिकना संभव नही और लंबी रेस का घोड़ा नही कहलाया जा सकता।
सनी देओल बेशक राजनिति में अपनी पहली पारी के दौरान ही अपनी शानदार जीत हासिल करने में सफल रहे हो। परन्तु सनी को यह समझना पड़ेगा कि उन्हे यहां बसी बसाई हकूमत पर राज करने का मौका मिला है। जिसे उन्हे अब न सिर्फ आगे बढ़ाना होगा बल्कि अपनी ओर से किए गए काम की बदौलत उसे आगे बुलंद करना होगा। फिल्हाल जिसमें वह सफल होते नही दिख रहे। लोगो के दिलों से इतनी जल्द क्रेज उतरते देख हैरानी हो रही है।
सनी देओल भी स्टारडम की बदौलत ही जीत दर्ज करवाने में कामयाब रहे। यह ठीक वैसे है जैसे विनोद खन्ना ने 1998 में जीत दर्ज की थी। जनता ने उन्हे एक लाख 6 हजार 833 मतों से जीत दिलाई तथा खन्ना ने काग्रेंस का गढ़ माने जाते गुरदासपुर का किला धवस्त करने में कामयाबी हासिल की। परन्तु फिर अचानक विनोद खन्ना हलके से गुम हो गए और हलके को कुछ नही दिला पाए तो एक साल बाद के हुए 1999 के चुनावों में स्टारडम एकदम खत्म हो गया और खन्ना को महज 1399 मत से जीत कर अपनी साख बचाने का मौका मिला।
शायद खन्ना उसी वक्त समझ गए कि स्टारडम के सहारे उनकी नांव ज्यादा देर राजनिति के समंदर में नही तैर सकती। जिसके लिए उन्होने विकास नामक जहाज पकड़ा और काम को अपना रास्ता चुना। जिसके सहारे उन्होने तीसरी पारी 2004 में 24 हजार 983 मतों से विजय पताका लहराई। चौथी बार खन्ना को प्रताप सिंह बाजवा से शिकस्त मिली परन्तु फिर पांचवीं बार उन्होने अपनी सत्ता हासिल की।
विनोद खन्ना के लिए भी राह आसान न थी, वह भी राजनिति में बिलकुल नए थे। जनता के दिलों तक पहुंचने के लिए उन्हे सड़को पर झाडू लगाना पड़ा, महज डायलोग बाजी से नही मुकेरियां पुल पर सड़कों पर उतर कर तत्कालीन सरकार से झूंझना पड़ा। गुरदासपुर को उन्होने अपना बेटा माना। जिसके चलते गुरदासपुर की जनता ने भी उनका पूरा साथ दिया।
परन्तु सनी देओल में अभी लोगो को वह छवि नही दिख रही जिसका वह आभास करते है। सनी देओल ने फिल्मों के जरिए लोगो के दिलों में राज तो कर लिया परन्तु राजनीति अखाड़े में मात खा रहे है। जो राजनिति में सही नही माना जाता। सांसद देओल से लोगो को विनोद खन्ना से भी ज्यादा काम करने की अपेक्षाएं है।
लोग चाहते है कि सनी देओल विनोद खन्ना की ही भांति गुरदासपुर को समझे, जिस तरह विनोद खन्ना ने यहां के लोगो के लिए कई सपने दिखाए। बेशक वह पूरे सपने नही सच कर पाए परन्तु वह लोगो को एक दिशा में लेकर चलने में कामयाब रहे। वैसे ही सनी देओल भी आज की जरुरत के अनुसार यहां लोगो की समस्याओं से रुबरु हो कर उनका हल करें।
सनी देओल कहते है कि वह सब कुछ करेगें परन्तु उन्हे बताना होगा कि वह क्या करेगें, उन्होने जो सोच रखा है वह उस जनता के समक्ष रखना होगा जिसने अपना मत देकर सनी देओल को सांसद सनी देओल बनाया। लोग उनके साथ जुड चुके है अब सनी देओल को आगे चलना है।
खैर यह तो वक्त ही बताएगा कि सनी देओल ने गुरदासपुर के लिए क्या सोच रखा है परन्तु यह साफ है कि फिल्मी डायलोग बोल कर लोगो का मनोरंजन तो जरुर कर सकते है। परन्तु उन्हे अपने साथ जोड़ कर नही रख सकते। क्योंकि फिल्म भी तीन घंटे से ज्यादा देखने पर बोरियत का एहसास करवाने लग जाती है। सो लोगो को साथ जोड कर रखने के लिए सनी देओल को लोगो की नब्ज पहचानना जरुरी है, फिर काम करना जरुरी है। जो उनका दूर तलक तक साथ निभाएगी। उन्हे लंबी रेस का घोडा बनाएगी।