केंद्र सरकार की तरफ से जम्मू -कश्मीर में पंजाबी को सरकारी भाषाओं संबंधीे बिल से बाहर रखना मातृभाषा की पीठ में छुरा घोंपने के समान- सुखजिन्दर सिंह रंधावा

Sukhjinder Randhawa

हरसिमरत बादल और अकाली दल के पंजाबी के प्रति झूठे प्यार का नकाब उतरा

चंडीगढ़, 3 सितम्बर: केंद्र सरकार की तरफ से जो आज एक बिल स्वीकृत किया गया है जिसके अंतर्गत कश्मीरी, डोगरी और हिंदी भाषाओं को जम्मू -कश्मीर में सरकारी भाषाओं के तौर पर मान्यता मिल गई है, यह बिल बिल्कुल पंजाबी विरोधी और पंजाबी भाषा की पीठ में छुरा घोंपने के समान है। इस कदम के द्वारा केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल और उसकी पार्टी शिरोमणि अकाली दल ख़ास कर प्रधान सुखबीर सिंह बादल के चेहरे से पंजाबी के प्रति प्यार का झूठा नकाब उतर गया है और अकाली अब बिल्कुल बेपर्दा हो गए हैं।

एक प्रैस बयान के द्वारा आज यह विचार प्रकट करते हुए पंजाब के सहकारिता और जेल मंत्री स. सुखजिन्दर सिंह रंधावा ने कहा कि केंद्र में सिखों की सिरमौर पार्टी होने का दावा करती शिरोमणि अकाली दल केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद भी यह ‘काला’ बिल स्वीकृत किया जाना एक ऐसा कलंक है जिसको अकाली कभी भी धो नहीं सकेंगे। उन्होंने आगे कहा कि भाजपा से तो क्या उम्मीद रखनी थी क्योंकि वह तो हमेशा ही पंजाब और पंजाबी विरोधी सुर अलापती है परन्तु शिरोमणि अकाली दल ख़ास कर हरसिमरत कौर बादल और सुखबीर सिंह बादल की चुप्पी लोगों को चुभने वाली है।

जम्मू -कश्मीर के पंजाब और पंजाबी के साथ गहरी साझ संबंधी इतिहास का हवाला देते हुए स. रंधावा ने कहा कि शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी के समय जम्मू -कश्मीर पंजाब का हिस्सा था और उस समय से ही इस क्षेत्र की पंजाब और पंजाबी के साथ गहरी साझ है जिसको मौजूदा भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की तरफ से इस तरह तोड़ा जाना बेहद मन्दभागा है और उससे भी मन्दभागा है पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत के लम्बरदार कहलवाने वाले अकालियों का मौन धारण करना।

कैबिनेट मंत्री ने आगे कहा कि वैसे तो अकालियों की तरफ से लोक हित से सम्बन्धित किसी भी मसले संबंधी मौन धारण करे बैठना कोई नयी बात नहीं है और इतिहास इसका गवाह रह चुका है। पहले, नागरिकता संशोधन एक्ट (सी.ए.ए.), फिर धारा 370 का ख़त्म किया जाना और उसके बाद में किसानी का कमर तोडऩे वाले कृषि आर्डीनैंस, हर मामले में अकालियों की चुप्पी ने इनके दोहरे किरदार को सामने लाया है। इस बिल के मौके पर उम्मीद थी कि एक अकाली मंत्री के कैबिनेट में होते हुए इसका ज़ोरदार विरोध होगा परन्तु ऐसा न होना अकालियों की नैतिकता पर प्रश्न निशान लगाता है।

स. रंधावा ने कहा कि ख़ुद को पंथक कहलवाने वाली पार्टी ख़ास कर बादल परिवार को अब लोगों को इस बात का जवाब देना पड़ेगा कि क्योंकि उन्होंने अपनी बहु हरसिमरत कौर बादल से इस मातृभाषा के बुरे फ़ैसले के खि़लाफ़ ज़ोरदार विरोध दर्ज करवाते हुए इस्तीफ़ा नहीं दिवाया। वह अकाली जो हमेशा ही अल्पसंख्यकों के रक्षक होने का दावा करते हैं, इस ताज़ा फ़ैसले से लोग मन से पूरी तरह उतर जाएंगे।

हरसिमरत कौर बादल को सवाल करते हुए स. रंधावा ने कहा कि पहले तो केंद्रीय मंत्री को यह साफ़ करना चाहिए कि क्या उसने यह मुद्दा ज़ोरदार ढंग से कैबिनेट में उठाया था और यदि हां तो फिर उसकी सुनी क्यों नहीं गई। इस सूरत में हरसिमरत कौर बादल को अपना पद त्याग कर केंद्रीय कैबिनेट में से बाहर आकर कम से -कम एक बार तो कोई पंजाबी समर्थकी कदम उठाने का हौंसला दिखाना चाहिए।

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