फील्ड मार्शल विलियम सलीम सैनिक के हक का सैनिक था

जंगी माहिरों की राएफील्ड मार्शल विलियम सलीम का नेतृत्व और मुहिमों पर हुई चर्चा

चंडीगढ़, 14 दिसम्बर:मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल 2019 के दूसरे दिन आज ‘फील्ड मार्शल विलियम सलीम के नेतृत्व गुण और उसकी मुहिमें’ विषय पर विचार चर्चा हुई। इस विचार चर्चा सैशन की अध्यक्षता लैफ. जनरल रिटायर्ड श्री टीएस शेरगिल ने की जब कि मेजर जनरल ए.पी. सिंह, कर्नल रीटायर्ड डा. रोबर्ट लेमन और ब्रिगेडियर रीटायर्ड एलन मलिनसन ने इस ज्वलंत चर्चा में शिरकत करते हुए फील्ड मार्शल विलियम सलीम के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। चर्चा के दौरान वक्तओं ने माना कि विलियम सलीम सैनिकों के हक का सैनिक था और वह बर्तानवी जनरल की बजाय भारतीय जनरल के तौर पर ज़्यादा जाना जाता है।चर्चा की शुरुआत करते हुए लैफ़. जनरल टीएस शेरगिल ने कहा कि फील्ड मार्शल विलियम सलीम की एक खाशियत थी कि वह अपने कमान का अच्छा मैनेजर था और वह जो भी उनसे चाहता था वह उनसे करवाने में सफल हो जाता था। जबकि उसके जवान उसको अपने में से एक ही समझते थे इसीलिए उसको सैनिकों का सैनिक कहा जाता था। उसके ऐसे ही गुणी स्वभाव के कारण उसको अंकल बिल भी कहा जाता था। उन्होंने कहा कि वह अपनी फ़ौज के उत्साह वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था और उसको एक बर्तानवी जनरल की बजाय भारतीय जनरल ज्यादा समझा जाता है क्योंकि उसके सैनिकों में ज्यादातर भारतीय थे।कर्नल रीटायर्ड डा. रोबर्ट लेमन ने कहा कि मार्च 1942 की बात है जब विलियम सलीम को बर्मा में फ़ौज की कमांड करने के लिए पदौन्नत करके भेजा गया था जहाँ जापानियों के साथ बर्तानवी फौजों को उलझना पड़ा था। उसको जब अपनी संख्या कम होने के बावजूद 900 मील की वापसी रिट्रीट करनी पड़ी तो भी उन्होंने अपनी फ़ौज के हौसले नहीं गिरने दिए और इस दौरान अपने सैनिकों की सुरक्षा को यकीनी बनाया। उन्होंने कहा कि उसने पहली और दूसरी विश्व जंग में शिरकत की और तीन बार वह जंग में जख्मी भी हुए। दूसरी विश्व जंग में उसने बर्मा की मुहिम में 14वीं आर्मी की कमांड की जिसको ‘फोरगोटन आर्मी’ कहा जाता था को कमांड करके अपना लोहा मनवाया हैं। दूसरी विश्व जंग के बाद वह बर्तानवी फ़ौज का पहला अफ़सर बना जिसने भारतीय फ़ौज के लिए काम किया हो और जो चीफ़ ऑफ द इम्पीरियल जनरल स्टाफ बना हो।ब्रिगेडियर रीटायर्ड एलन मलिनसन ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि विलियम सलीम ने 1944 अरकान में लगभग कामयाब हमलों का नेतृत्व किया जिसके बाद वह इंफाल और कोहिमा की लड़ाई में जापानियों को पीछे धकेलने में कामयाब हुए। उन्होंने कहा कि विलियम सलीम एक सख्त जंग लडऩे वाला था जिसने जंग कला को समय के साथ निखारा। वह अपने जवानों के हौसले बुलंद रखने के लिए जाना जाता था और वह जवानों को हर प्रकार से लड़ाई के लिए समर्थ बनाए रखता था। वह विरोधियों से कहीं तेज़ी से उनकी जंगी कसरतें समझ कर योजना बनाकर अपनी फ़ौज की जीत यकीनी करता था।मेजर जनरल ए.पी. सिंह ने कहा कि फील्ड मार्शल विलियम सलीम का अपने फौजियों के साथ बहुत ही घैहरा रिश्ता होता था। अपनी पुस्तक ‘डिफीट इन टू विकटरी’ में उसने लिखा है कि उसकी फ़ौज में मलेरिया की बीमारी का बहुत प्रकोप था क्योंकि बेस्वादी दवा सैनिक नहीं ले रहे थे। परन्तु सलीम ने इसका दोष डॉक्टरों पर डालने की बजाय अपने स्टाफ की जि़म्मेदारी तय की और बीमारी का प्रभाव घटाने में कामयाब हुए। उसने जब मलेरिया की रोकथाम में भूमिका न निभाने वाले कुछ अफसरों पर कार्यवाही की तो दूसरों को समझ आ गया कि यह कितनी गंभीर समस्या है और जब सब ने यत्न किये तो मलेरिया का प्रकोप कम होकर 5 प्रतिशत रह गया जो कि पहले 70 प्रतिशत तक था। उसकी अपने फौजियों से घैहरे रिश्ता उन की मुश्किलें हल करने के यत्न उनको सुविधाएं देने की कोशिश ने उसकी फ़ौज के हौसले बढ़ाए और यही बर्मा में उसकी जापानियों और जीत का आधार बना।

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