छलका शहीद परिवारों का दर्द-शायद उनके घर के शहीद को सरकार शहीद ही नहीं मानती!

कारगिल युद्ध से पहले शहीद हुए जांबाजों के परिजन झेल रहे हैं सरकार की उपेक्षा का दंश

पंजाब के 24 परिवारों में से 6 परिवार हैं गुरदासपुर से संबंधित

गुरदासपुर 18 जुलाई( मनन सैनी)। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा। जैसी क्रांतिकारी पंक्तियों के रचियता बंकिम चंद्र चटर्जी ने स्वप्न में भी यह नहीं सोचा होगा कि आजादी के बाद राष्ट्र की बलिवेदी पर कुर्बान होने वाले रणबांकुरों की शहादतों को सरकारों द्वारा इस तरह भूला दिया जाएगा। 

आज जब सारा देश कारगिल युद्ध की 21वीं वर्षगांठ पर उस युद्ध में शहीद हुए जांबाज सैनिकों की शहादत को एक सुर में याद कर रहा है।  मगर 1999 से पहले जिन सैनिकों ने राष्ट्रहित में प्राणों की आहुति देकर अपना नाम शहीदों की श्रेणी में स्वर्ण अक्षरों में अंकित करवाया, उनकी शहादत को सरकार ने भूला दिया है। क्योंकि 1999 के कारगिल युद्ध के बाद सरकार ने एक पॉलिसी बनाई, जिसमें 1999 व उसके बाद शहीद हुए सैनिकों के परिजनों को उसमें शामिल किया गया। जिसके तहत परिवार के एक सदस्य को नौकरी व गांव में शहीद की याद में यादगार बनाना उस पालिसी में शामिल किया गया। मगर 1994 से लेकर 1998 तक शहीद होने वाले सैनिकों के परिजनों को इस लाभ से वंचित रखा गया। 

इन चार सालों में पंजाब के 24 वीर सपूतों ने कश्मीर में आतंकियों से लड़ते हुए अपना बलिदान दिया तथा मरणोपरांत राष्ट्रपति से वीर चक्र, शौर्य चक्र व कीर्ति चक्र जैसे वीरता पदकों से  सम्मानित हुए। मगर यह 24 परिवार सरकार की पालिसी के चलते आज गुमनामी में जीवन जीने को मजबूर है। इन 24 परिवारों में से 6 परिवार जिला गुरदासपुर से संबंधित है। जिनमें से चार शहीद परिवारों ने आज नम आंखों से अपनी व्यथा सुनाते हुए कहा कि शायद उनके घर के शहीद को सरकार शहीद ही नहीं मानती। 

बोली शहीद की पत्नी-शहादत के तीन महीने बाद पैदा हुआ बेटा घूम रहा बेरोजगार

सेना की 22 पंजाब रेजीमेंट के शौर्य चक्र विजेता शहीद सिपाही रजिंदर सिंह निवासी कलानौर की पत्नी पलविंदर कौर ने नम आंखों से बताया कि उनके पति एक नवंबर 1998 को पुंछ सेक्टर में आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। पति की शहादत के तीन महीने बाद उन्होंने बेटे रविंदर को जन्म दिया। उसने बताया कि पति की शहादत के मौके पर सरकार ने उनके पति की याद में यादगारी गेट व स्कूल का नाम  शहीद के नाम पर रखने की घोषणा की थी। मगर शहादत के 22 वर्षों के बाद भी सरकार ने अपना वादा नहीं निभाया। आज उनका बेटा बीएससी करने के बाद बेरोजगार घूम रहा है। 

जिस दिन शहीद पति का भोग था, उसी दिन दिया बेटी को जन्म-

सेना की 11 सिख एल.आई युनिट के शौर्य चक्र विजेता शहीद सिपाही रौनकी सिंह निवासी गालवकलां (लुधियाना) की पत्नी दलजीत कौर ने नम आंखों से बताया कि उनके पति ने 12 अगस्त 1997 को जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा सेक्टर में आतंकियों से लड़ते हुए शहादत का जाम पिया था तथा जिस दिन उनके पति का भोग था, उसी दिन उसने बेटी गुरमीत कौर को जन्म दिया। उसने बताया कि पति की शहादत के बाद उसके ससुराल वालों ने उनका साथ छोड़ दिया तथा वह अपनी चार बेटियों को लेकर अपने मायके बटाला आ गई। उसकी तीन बेटियों की शादी हो चुकी है। मगर उनकी चौथी बेटी गुरमीत कौर जिसने ए.एन.एम का कोर्स किया है तथा आगे भी उच्च शिक्षा ले रही है। उसने बताया कि उसका कोई बेटा नहीं है। इस लिए उसकी बेटी ने सरकारी नौकरी के लिए कई बार आवेदन किया। मगर आज तक उसे नौकरी नहीं मिली। मामूली पेंशन से उसके घर का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल रहा है। शहीद की पत्नी ने बताया कि पति की शहादत के 23 वर्षो के बाद भी गांव में उनकी कोई यादगार नहीं बनी। 

शहीद बेटे के गम में पिता भी चल बसा-

सेना की 6 पैरा रेजीमेंट के शौर्य चक्र विजेता कमांडो पी.टी.आर ज्ञान सिंह सलारिया निवासी कोहलियां की माता पुष्पा देवी ने अपना दुख ब्यां करते हुए बताया कि उनके अविवाहित बेटा 26 नवंबर 1998 को कुपवाड़ा सेक्टर में आतंकियों से लड़ते हुए शहादत का जाम पी गया था तथा मरणोपरांत देश के तत्कालीन राष्ट्रपति ने शौर्य चक्र से सम्मानित किया था। उसने बताया कि उसका दूसरा बेटा गगन सिंह बीए करने के बाद बेरोजगार घूम रहा है। अपने शहीद बेटे के गम व दूसरे बेटे को नौकरी न मिलने के दुख को सहन न करते हुए उनके पति रिटायर सूबेदार बलवान सिंह डेढ़ साल पहले मौत के आगोश में चले गए। एक तो शहीद बेटे व पति के जाने के दुख ऊपर से सरकार की उपेक्षा उनके जख्मों पर नमक छिडक़ रही है। शहादत के 22 वर्षों के बाद बेटे की गांव में कोई यादगार नहीं बनी। 

पति की शहादत के बाद सरकार द्वारा गैस एजेंसी देने का वायदा नहीं हुआ वफा-

सेना की 9 महार रैजीमेंट के शौर्य चक्र विजेता सिपाही सतपाल सिंह निवासी बलड़बाल (श्री हरगोबिंदपुर) की पत्नी कुलवंत कौर ने सजल नेत्रों से बताया कि उनके पति ने 11 नवंबर 1994 को जम्मू कश्मीर के डोडा जिले में आतंकियों से लड़ते हुए अपना बलिदान दिया था। पति की शहादत के मौके पर सरकार द्वारा उनके परिवार को गैस एजेंसी, शहीद की याद में स्कूल का नाम व यादगिरी गेट बनाने की घोषणा की थी। मगर अफसोस पति की शहादत के 26 वर्षों के बाद भी सरकार का वायदा वफा नहीं हुआ। उनका बेटा भुपिंदर सिंह बी.ए करने के बाद आज बेरोजगार घूम रहा है। पति की मामूली पेंशन से घर का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल रहा है। 

शहीदों को कैटागिरी में न बांटे सरकार, करे पालिसी में बदलाव-कुंवर विक्की

शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद के महासचिव कुंवर रविंदर सिंह विक्की ने कहा कि सरकार शहीदों को किसी भी कैटागिरी में न बांटे तथा कारगिल युद्ध के बाद बनाई पालिसी में बदलाव करते हुए पंजाब के इन 24 परिवारों को भी इसमें शामिल कर इन परिवारों को उनका बनता हक दें। उन्होंने कहा कि इन 24 परिवारों में से 16 परिवारों के बच्चे अब ओवरएज हो चुके हैं तथा बेरोजगार होकर सरकार की इस पालिसी का शिकार बन गए हैं। कुंवर विक्की ने कहा कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह खुद एक सैनिक है तथा उनके दिल में सैनिकों व शहीद परिवारों के लिए अथाह सम्मान है तथा उन्हें उम्मीद है कि वह इन परिवारों की भावना का सम्मान करते हुए कारगिल युद्ध के बाद बनाई पालिसी में बदलाव करते हुए इन परिवारों को उसमें शामिल कर इनके बच्चों को नौकरी देकर उन शहीदों का सम्मान करें। इस अवसर पर शहीद लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह अशोक चक्र के पिता कैप्टन जोगिंदर सिंह व माता जतिंदर कौर भी उपस्थित थे।

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