पंजाबियों ने अपने गर्व की रक्षा के लिए विदेशी हमलावरों का किया मुकाबला-इतिहासकार

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‘दिल्ली फतेह बन्दा सिंह बहादुर तों महाराजा रणजीत सिंह के दौर का जंगी इतिहास’ विषय पर हुई पैनल चर्चा

चंडीगढ़, 13 दिसम्बर। लेक क्लब में शुरू हुए ‘ मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल’ के पहले दिन माहिरों द्वारा ‘दिल्ली फतेह बन्दा सिंह बहादुर तों महाराजा रणजीत सिंह के दौर का जंगी इतिहास’ विषय पर पैनल चर्चा की गई। इस चर्चा की शुरुआत पंजाबी लेखिका बब्बू तीर ने करवाई और इसमें लेफ्टिनेंट कर्नल रिटा. जसजीत सिंह गिल, इतिहासकार डा. अमनप्रीत सिंह गिल और प्रो. जसबीर सिंह ने बतौर विषय माहिर शिरकत की।    इस पैनल चर्चा की शुरुआत करते हुये शिक्षा शास्त्री प्रो. जसबीर सिंह ने 18वीं सदी के इतिहास का जिक्र करते हुये कहा कि यह दौर की शुरुआत बाबा बन्दा सिंह बहादुर के आगमन के साथ हुई थी और यह महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में सिख राज्य की स्थापना तक जारी रहा। उन्होंने कहा कि पंजाबी हमेशा विदेशी हमलावरों से बचे रहे और इन्होंने अपने अजादाना स्वभाव करके इनका डट कर विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह कहना उचित नहीं है कि पंजाब भारत में हमलावरों के प्रवेश का रास्ता था, इसलिए पंजाबियों को जंगे अधिक करनी पड़ीं जबकि वास्तव में पंजाबियों का ज़ुल्म न सहन का जज़्बा था जिस कारण उन्होंने रोजाना नयी मुहिमों का मुकाबला किया। उन्होंने कहा कि पंजाबियों ने अपनी मातृ भूमि और अपने गौरव की रक्षा के लिए अत्याचार का हमेशा सामना किया।    उन्होंने कहा कि इस दौर के जंगी इतिहास सम्बन्धी उक्त समय में रचे गये साहित्य के एक रूप ‘वार’ और ‘जंगनामों’ से भी बहुत अच्छी जानकारी लयी सकती है। प्रो. जसबीर सिंह ने कहा कि इस दौर में हर भाईचारे के पंजाबी ने विदेशी हमलावरों से अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए योगदान डाला था।   लेफ्.ि कर्नल रिटा. जगजीत सिंह गिल ने इस मौके पर अदीना बेग ख़ान के जीवन का जिक्र करते हुये कहा कि उसकी तरफ से पंजाब का दीनानगर बसाया गया था। उन्होंने बताया कि वह इतिहास का एक ऐसा किरदार था जो अपने समय के सभी सत्ताधारियों के साथ नज़दीकी रखता था। उन्होंने यह भी बताया कि महाराजा रणजीत सिंह की फ़ौज में यूरोपीय जनरलों के आने से पहले ही उन्होंने अपनी फ़ौज को पेशेवराना प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया था और उनकी फ़ौज पूरी तरह अनुशासनबद्ध और प्रशिक्षित थी। उन्होंने कहा कि इतिहास को यदि निरपेक्षता के साथ समझना हो तो ज़रूरी है कि इसको राजनीति, धर्म और मिथ्यों से मुक्त होकर समझा जाये।    इतिहासकार डा. अमनप्रीत सिंह गिल ने इस मौके पर कहा कि उस दौर में जंग जीतने के लिए फ़ौजी संख्या से ज़्यादा महत्वपूर्ण जंग लडऩे वाले लोगों की भावना थी कि उनमें ग़ुलाम होने से बचने की कितनी इच्छाशक्ति है। उन्होंने इस मौके पर यह भी ज़ोर देकर कहा कि सरहिन्द फतेह दिल्ली फतेह से भी महत्वपूर्ण घटना थी क्योंकि दिल्ली फतेह के समय तो मुग़ल सल्तनत पहले ही खत्म हो चुकी थी परन्तु बाबा बन्दा सिंह बहादुर की तरफ से सरहिन्द फतेह के मौके पर मुग़ल सल्तनत का झंडा बुलन्दियों पर था और किसी ने ऐसी कल्पना भी नहीं की थी। उन्होंने कहा कि बाबा बन्दा सिंह बहादुर की मुगलों पर जीत में समाज के सभी वर्गों का भरपूर योगदान था। उन्होंने कहा कि बन्दा सिंह बहादुर ने सामाजिक और ज़मीनी सुधारों के द्वारा समाज के हर वर्ग का दिल जीत लिया था। लेखिका बब्बू तीर ने चर्चा को समापन की तरफ ले जाते हुए दिल्ली फतेह काल से जुड़े इतिहास संबंधी चर्चा की।———

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