ठेके पर भर्ती किए कोच हो रहे सरकार की उदासीनता का शिकार

गुरदासपुर। पंजाब सरकार ने टोकियो ओलंपिक खेलों में भाग लेकर आए खिलाडिय़ों को नकद ईनाम राशि और नौकरियों में उन्नतियां देकर पंजाब में खेल सभ्याचार पैदा करने से सार्थक प्रयास किया है, मगर यह प्रयास जमीनी हकीकतें बदलने के लिए खिलाडिय़ों को ट्रेनिंग देने वाले कोचों को बुनियादी सुविधाएं देने से बिना सफल होना नामुमकिन है। पंजाब सरकार के कोचों के प्रति उदासनीता से निराश कोचों की कोई मान की बात नहीं पूछ रहा है। जिससे खेल विभाग पंजाब ने ठेके पर भर्ती किए 89 कोच निराशा के आलम में डूबे हुए है। इस संबंधी कोचों के संगठन ने मुख्यमंत्री पंजाब को जिला खेल अधिकारी गुरदासपुर के जरिए मांग पत्र भेजा गया।

ठेके पर रखे कोचों के संगठन के नेता संदीप कुमार ने बताया कि वह एनआईएस पटियाला से खेलों की ट्रेनिंग का डिप्लोमा कोर्स पास करने के बाद पिछले 12 सालों से खेल विभाग में कोचिंग की सेवा निभा रहे है। उनकी कड़ी मेहनत के चलते पंजाब के खिलाडिय़ों ने देश विदेश में पंजाब का नाम रोशन किया है। लेकिन पंजाब सरकार ने उनकी मेहनत का कोई भी मूल्य नहीं दिया। महज 14 हजार रुपए प्रति महीने में लंबे समय से काम करते कोचों का आर्थिक शोषण किया जा रहा है। जबकि उनकी योगयता व काम वाले पीआईएस मोहाली के कोचों को 35 हजार से 80 हजार रुपए प्रति महीना देकर सौतेला व्यवाहर किया जा रहा है। वहीं गुरदासपुर के जूडो कोच रवि कुमार ने बताया कि उनके वेतन में कोई वार्षिक बढ़ोत्तरी नहीं की जा रही है। पंजाब के ठेके पर भर्ती कोचों की मांग है कि उन्हें खेल विभाग पंजाब के अधीन लाकर पक्का किया जाए और उनकी योगयता मुताबिक वेतन दिए जाए।

ठेके पर भर्ती किए कोचों के अधिकार में आवाज बुलंद करते हुए डेमोक्रेटिक मुलाजिम फैडरेशन पंजाब की प्रदेश प्रचार सचिव बलविंदर कौर ने कहा कि खेल सभ्याचार को शीर्ष क्रम पर लाने वाले राज्य हरियाणा में 1300 के करीब कोच गांव स्तर पर सेवाएं दे रहे है। जबकि पंजाब में 240 के करीब पक्के व कच्चे कोच है। पंजाब के बहुत से जिलों में खेल अधिकारियों की पोस्टें रिक्त है। उन्होंने सरकार को चेतावनी दी है कि यदि ठेके पर भर्ती किए कोचों को पक्का न किया गया तो संगठन कड़ा रुख अपनाने के लिए मजबूर होगी। 

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