सैनिक परिवारों के लिए वरदान है स्टेशन हैडक्वार्टर का वैटर्न सहायता केन्द्र

फोटो कैप्शन:01 पूर्व सैनिक द्वारा छोड़ी गई पत्नी वंदना कुमारी अपने बेटे देव राणा के साथ अपनी व्यथा सुनाती हुई।

8 साल तक संघर्ष कर रही पूर्व सैनिक द्वारा छोड़ी पत्नी को दिलाया उसका अधिकार

पठानकोट, 22 दिसम्बर ( मनन सैनी )। भारतीय सेना ही सही मायनों में अपने सैनिकों, पूर्व सैनिकों, वीर नारियों व शहीद परिवारों के मान सम्मान को बहाल रखते हुए उन्हें उनके अधिकार दिलाने के लिए हमेशा वचनबद्ध रहती है। ऐसी ही एक मिसाल स्टेशन हैडक्वार्टर द्वारा स्थापित वैटर्न सहायता केन्द्र (वी.एस.के) की है,जो शहीद परिवारों, वीर नारियों व पूर्व सैनिकों के लिए वरदान साबित हो रहा है तथा इस वेटर्न सहायता केन्द्र के इंचार्ज कर्नल रैंक के अधिकारी की कार्यशैली व प्रयासों से अब तक कई सैनिक परिवारों को पैंशन व एरियर मिल चुका है, यह वो परिवार है, जो लंबी कानूनी लड़ाई लडऩे के बाद थक हारकर घर बैठ चुके थे, मगर वेटर्न सहायता केन्द्र की जानकारी मिलने के बाद इन्होंने अपने अधिकार लेने के लिए इस केन्द्र में गुहार लगाई, जहां से उन्हें पूरा इंसाफ मिला और अब वह हंसी खुशी अपना जीवन गुजार रहे हैं।

इसी कड़ी में इस वेटर्न सहायता केन्द्र के इंचार्ज ने एक ऐसी संघर्षशील पूर्व सैनिक की पत्नी को उसका हक दिलाया है, जिस पूर्व सैनिक ने शादी के कुछ वर्षों बाद ही अपनी पहली पत्नी को छोडक़र दूसरी शादी कर ली थी। यह दुख भरी कहानी है स्थानीय ढांगू पीर मोहल्ला निवासी वंदना कुमारी की, जिसकी शादी वर्ष 2001 में डोगरा रेजीमेंट के लांस नायक दविन्द्र सिंह के साथ हिमाचल के राजा के तालाब के पास पड़ते गांव भोल खास में हुई थी। वंदना ने बताया कि शादी के कुछ वर्षों बाद ही उसके पति ने उसे तंग करना शुरू कर दिया और 2011 में उसे घर से निकाल दिया। उसने बताया कि 2011 में ही उसने अपने पति पर खर्चे का केस किया,जो दो साल तक चला व 2013 में फैसला उसके हक में आया कि उसका पति उसे 15 हजार रुपए महीना खर्चा देगा, मगर उसके पति ने उसे कोई पैसा नहीं दिया और प्री.मैच्योर रिटायरमैंट लेकर 2013 को मुझे बिना तलाक दिए दूसरी शादी कर ली। उसने अपने पति पर फिर दूसरा केस किया, उसका फैसला भी उसके हक में आया, मगर उसे यह पता नही चल रहा था कि वह कोर्ट के ऑर्डर को किस तरह लागू करवाए, फिर उसने जिला सैनिक बोर्ड धर्मशाला में जाकर अपनी व्यथा सुनाई, मगर वहां से भी उसे निराशा ही मिली। फिर थक हार कर उसने आवा (आर्मी वाईवज वैल्फेयर एसोसिएशन)की चेयरपर्सन जोकि सेना प्रमुख की पत्नी होती है, उसे पत्र लिख अपनी व्यथा सुनाई। जिसका संज्ञान लेते हुए आवा की चेयरपर्सन ने स्टेशन हैडक्वार्टर के वेटर्न सहायता केन्द्र को उसकी मदद करने के लिए लिखा।

8 वर्ष बाद वंदना को मिला इंसाफ, माध्यम बना वेटर्न सहायता केन्द्र:
वंदना ने नम आंखों से बताया कि उसने अपना हक लेने के लिए 8 साल संघर्ष किया, अपने इकलौते बेटे देव राणा जो बारहवीं कक्षा में पढ़ रहा है, उसके साथ वह राजा के तलाब में ही किराये पर रह रही है और एक प्राइवेट स्कूल में मामूली तनख्वाह पर बतौर अध्यापक नौकरी कर रही है। उसने आगे बताया कि वेटर्न सहायता केन्द्र के अधिकारी ने उन्हें अपने पास बुलाया और उसके केस को स्टडी किया। उसके बाद उन्होंने उसके पति की युनिट के रिकॉर्ड कार्यालय में संपर्क कर उसका पक्ष रखा, मगर रिकॉर्ड ऑफिस ने जबाव में यह लिखा कि हम सेवानिवृत सैनिक पर कोई दबाव नहीं बना सकते, यह हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता, मगर वेटर्न सहायता केन्द्र के कर्नल रैंक के अधिकारी चुप नहीं बैठे, फिर उन्होंने भारतीय स्टेट बैंक नूरपुर जहां से उसके पति पैंशन लेते थे, से संपर्क कर केस के सारे डाक्यूमेंट बैंक को मेल किए, उसके बाद बैंक ने सारे केस को सही मानते हुए उसके पति की पैंशन से 10 हजार रुपए काटकर 5-5 हजार रुपए उसे व उसके बेटे को खर्चा लगा दिया, जो अक्तूबर 2020 में उन्हें मिलना शुरू हो गया है। वंदना कुमारी ने बताया कि वह तो ना उम्मीद हो चुकी थी कि अब उसे कुछ नहीं मिलने वाला, मगर वेटर्न सहायता केन्द्र के अधिकारी उसके लिए मसीहा बनकर आए, जिन्होंने उसे व उसके बेटे को उनका हक दिलवाया, इसलिए वह स्टेशन हैडक्वार्टर व वेटर्न सहायता केन्द्र का आभार व्यक्त करती है।

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