अकाली दल द्वारा एन.डी.ए. छोडऩे के फ़ैसले में कोई नैतिकता शामिल नहीं, यह सिफऱ् राजसी मजबूरी-कैप्टन अमरिन्दर सिंह

कृषि बिलों पर किसानों को मनाने में असफल रहने पर भाजपा द्वारा दोष मढ़े जाने के बाद अकाली दल के पास कोई चारा नहीं था बचा

चंडीगढ़, 26 सितम्बर:
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने अकाली दल द्वारा एन.डी.ए. छोडऩे के फ़ैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह बादलों के लिए राजसी मजबूरी से बढ़ कर और कुछ नहीं है, जिनके पास कृषि बिलों पर भाजपा द्वारा दोष मढ़े जाने के बाद एन.डी.ए. छोडऩे से बिना कोई चारा नहीं बचा था।

अपने पहले वाले बयान की तरफ ध्यान दिलाते हुए जिसमें उन्होंने इस बात की तरफ इशारा किया था कि एन.डी.ए. अब अकालियों को मक्खन में से बाल की तरह निकाल देगी, यदि उन्होंने ख़ुद ही इज्जत के साथ गठजोड़ न छोड़ा, कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि शिरोमणि अकाली दल के इस फ़ैसले में कोई भी नैतिकता शामिल नहीं है। अकालियों के सामने और कोई रास्ता नहीं था बचा। अब जब कि भारतीय जनता पार्टी ने यह साफ़ कर दिया था कि वह कृषि बिलों के फ़ायदों संबंधी लोगों को समझाने में नाकाम रहने के लिए शिरोमणि अकाली दल को जि़म्मेदार समझती है।

मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि एन.डी.ए. की अपेक्षा तोड़-मरोड़ करने का अकाली दल फ़ैसला उनकी तरफ से बोले जाने वाले झूठ और बेईमानी की कहानी का अंत है, जिसका निष्कर्ष बिलों के मुद्दे पर उनके अकेले पड़ जाने के रूप में सामने आया। उन्होंने आगे बताया कि सुखबीर सिंह बादल की हालत आगे कुआँ और पीछे खाई वाली बन गई थी, क्योंकि उसने मूलभूत दौर में कृषि अध्यादेशों के मुद्दे पर उसूलों से भरपूर स्टैंड नहीं लिया था, परन्तु बाद में किसानों द्वारा किए गए व्यापक गुस्से के कारण उसने अचानक ही इस मुद्दे पर यू टर्न ले लिया।

मुख्यमंत्री ने साफ़ किया कि अब जब भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने अकाली दल के झूठ, फऱेब और दोहरे मापदण्डों का राज़ खोल कर रख दिया, तो अकालियों के पास एन.डी.ए. से बाहर आने का ही एकमात्र रास्ता बचा था। परन्तु इस कदम से अकालियों को अपनी नाक बचाने में मदद नहीं मिलेगी, जैसे कि उनकी उम्मीद थी क्योंकि अब अकाली ख़ुद को बड़े राजनैतिक तूफ़ान में घिरा हुआ पाएंगे और उनके पास अब पंजाब या केंद्र में कहीं भी राजनैतिक तौर पर ठहरने योग्य जगह नहीं बची।

कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा यदि सुखबीर बादल, हरसिमरत बादल और अनय अकाली नेताओं में कोई भी शर्म बची है तो उनको केंद्र सरकार के हिस्सेदार बन कर उठाए गए अपने धोखाधड़ी भरपूर कदमों को कुबूल करके किसानों से इसकी माफी माँगनी चाहिए।

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